अध्यात्म और विद्वान

अध्यात्म और विद्वान



कहा जाता है ‘‘जहॉं विज्ञान खत्म होता है वहॉं से अध्यात्म शुरू होता है। आज हमारे देश व विश्व के वैज्ञानिकों ने चाहे जितनी भी तरक्की कर ली हो परन्तु वह अभी बहुत कम है।
 रामचरित्र मानस में अनेक ऐसे उदाहरण हैं जो चमत्कारिक है। जब अयोध्या में भगवान राम का प्राकट्य हुआ तो भगवान सूर्य की गति रूक गई वे अयोध्या में भव्य जन्मोत्सव का आनन्द लेते रहे और एक महीने का दिन हो गया।



चौ0- कौतुक देरिष पतंग भुलाना।
 एक मास तेहि जात न जाना।।
दोहा- मास दिवस कर दिवस था मरम न जानइ कोई।
 रथ समेत रवि था केउ निसा कवन विधि होई।।
लंका में रावण के गुप्तचरों ने उसे सूचना दी-
चौ0- अस में सुना श्रवन दसकंधर।
 पदुम अठारह जूथप बंदर।।



  इतनी विशाल वानर भालुओं की सेना के साथ भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई की तो इनके खाने-पीने की क्या व्यवस्था थी। श्रीराम के पास गुरू विश्वामित्र द्वारा ऐसी विज्ञा प्रदा की गई थी।



चौ0- तब रिषि निज नाथहि जिचॅं चीन्ही।
 विधानिधि कहुॅं विधा दीन्ही।।
 जाते लाग न छुधा पिपासा।
 अतुलित बल तुनु तेज प्रकासा।।



  बन गमन के दौरान असिरिषि की पत्नी माता अनुसुइया जी ने माता सीता को ऐसा वस्त्र दिया जो 14 वर्ष तक नया ही बना रहा कभी गन्दा ही नहीं हुआ।



चौ0- रिषि पतिनी मन सुख अधिकाई।
 आसिष देई निकट वैठाई।।
 दिव्य बसन धूषन पहिराए।
 जे नित नूतन अमल सुहाए।।



वन जाते समय भगवान श्री राम ने ऐ ऐसी पत्थर की शिला को अपने चरण से स्पर्श किया जो गौतम ऋषि के श्राप के कारण पत्थर बन गयी थी, ये शिला गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या थी।



दोहा- गौतम नारि श्राप बस, उपल देह धरि धीर।
चरन कमल रज चाहति, कृपा करहु रधुवीर।।
इस प्रसंग की याद केवट ने भी दिलाई श्री राम को।
चौ0- छुवत शिला भई नारि सुहाई।
पौहन ते न फाढ कठिनाई।।



 वन में माता सीता के हरण के पश्चात जब प्रभु राम ने वानर-भालुओं की सेना सहित समुद्र तट पर पहुंॅचे और समुद्र पर पुल का निर्माण किया पत्थरों को पानी के ऊपर तैरा दिया क्या गजब की तकनीक रही होगी। जिसे ‘‘नासा’’ ने भी माना कि समुद्र पर पत्थरों का पुल था।



चौ0- बांधा सेतु नील नल नागर।
 राम कृपा जसु भयउ उजागर।।
 बूड़हि आनहि बोरहिं जेई।
 भए उपल बोहित सम तेई।।



स्मुद्र पर पुल का निर्माण होने के पश्चात जब सेना पर होने लगी तो अधिक भीड़ होने के कारण बहुत से वानर भालू आकाश मार्ग से समुद्र पार किये।



दोहा- सेतु बंध भइ भीर अति कपि नभ पंथ उडाहि।
अपर जल चरन्हि ऊपर, चढ़ि चढ़ि पारहि जाहिं।।



लंका पर विजय के पश्चात बहुत सारे वानर भालू भी लड़ाई में मारे गये जब श्रीराम ने देखा तो वे दुखी हुए कि इन्होंने हमारे लिये अपने प्राण त्याग दिये । तब उन्होंने इन्द्र को अमृत वर्षा करने का आदेश दिया। तब इन्द्र ने युद्ध स्थल में अमृत की वर्षा की तब चमत्कार देखिए कि अमृत वर्षा तो उन राक्षसों पर भी हुई जो लड़ाई में मारे गये थे। परन्तु केवल राम की सेना के वानर भालू ही जीवित हुए। 



चौ0- सुधा बरधि भइ देहुॅं दल ऊपर।
जिये भालू, कपि नहिं रजनी परे।।



विभीषण का राजतिलक करने के बाद जब अयोध्या प्रस्थान की बात हुई तो ये हुआ कि ये सब लोग अयोध्या कैसे पहुॅंचेगें। तब कुबेर नामक देवता ने पुष्पक विमान भगवान की सेवा में अर्पित किया। इसकी विशेषता यह थी कि जाहें जितने लोग इसमें बैठते परन्तु एक सीट हमेशा खाली रहती और यह इच्छित दिशा की ओर अपने आप चलता था।


उपर्युक्त वर्णित ऐसी घटनाएं थी जो हमें विश्वास करने के लिए वाध्य कर देती है कि हम आज जिस तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं अभी बहुत पीछे हैं।
हम अपने लिये प्रभु से यह प्रार्थना करते हैं कि बची हुई जिन्दगी आपके चरणों में पूजन पाठ में बीत जाय।



दो- कामिहि नारि पियारि जिमि,
लोभिहिं प्रिय जिमि दाम।
तिमि रघुनाथ निरंतर।
प्रिय लागहुॅं मोहि राम।।
चौ0- अब कृपालु निज भगति पावनी।
देहुॅं कृपा करि अनपयनी।।
यह वर मागहुॅं कृपा निकेता।।
वसहुॅं हृदय सिथ अनुज समेता।।


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 धमेन्द्र सक्सेना- 9956615703