ईश्वर की कृपा, और माता पिता का आशीर्वादः सर्वोपरि
एक डांस कॉम्पिटिशन में निर्णायक की भूमिका के पश्चात परिणाम घोषित करने से पूर्व कहे अपने व्यक्तव्य पर मैं खुद विचार कर रही थी। मैंने सभी प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि हम सभी की प्रतिभा का मापदण्ड 3 से 5 मिनट का समय नहीं हो सकता। असीमित महत्वांक्षाओं से परिपूर्ण हर प्रतिभागी अपनी कलात्मकता के उत्कर्ष प्रदर्शन को सर्वश्रेष्ठ रूप में प्रदर्शित करता है, पर कई कारक हो सकते है, जिससे कि आकंलन और निर्णयस्वरूप परिणाम आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं भी हो सकता। पर प्रयास करते रहिये, जीवन सफलताओं और उम्मीदों के अथाह अवसरों को लिये आपके लिये प्रतीक्षारत है। घर आकर मैं स्वयं सोचने लगी कि हम सभी का जीवन भी तो एक मंच की तरह है, जहॉं हम सब अपनी उत्कृष्टता के प्रदर्शन से सफलता की बुलंदिया छूना चाहते है। अपने प्रयासों और कर्मठता के समक्ष कभी भूल जाते है, कि परिस्थितियों और निर्यात के आंकलन में कभी पूर्ण परिणाम भी हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं मिल पाता। और निराशाओं की गहन अनुभूति में जीवन का प्रयास, निरर्थक सा लगने लगता हैं। शायद हम ये भूल जाते हैं कि, एक घटना, एक प्रयास, एक असफलता, एक निराश परिणाम हमारे सम्पूर्ण उर्जान्वित व्यक्तित्व का अंतिम परिणाम निर्धारित नहीं कर सकती। जीवन अंत अवसरों को लिये, हमसे परिधु की अपेक्षा लिये सफलता का उम्मीदे लिये है। निकट मन, कठिन परिश्रम और सत्मार्ग जीवन की सफलता के द्योतक है। माता-पिता का आशीर्वाद जीवन के हर मार्ग को प्रशस्त कर देता है। प्रभु की कृपा पर पूर्ण रूपेण समर्पित भाव से कर्म करते रहने पर, कर्म करते हुए भी, हम परिणाम की चिंता से रहे तो, जीवन की निराशाओं से मुक्त होने में सहायता मिलेगी। आज के भौतिक जीवन में हर मनुष्य की समस्या अपना दुःख और अवसाद सर्वोपरि है। जीवन भी तो क्षण भंगुर ही है। अपने ईश्वर रूपी निर्णायक से समक्ष यदि हम भी सर्वोकृष्ट प्रदर्शन कर समर्पित भाव से कर्तव्य करते रहे तो, कम से कम अन्तर्मन में व्याप्त सुख और शांति का तो हमें अपने नैतिक मूल्यों में उपर उठने में सहायता करेगा। जीवन में सत्य, प्रेम, निश्छल भाव, परिश्रम के कोई भी विकल्प नहीं है। और जहॉं पे भाव कर्तव्यनिष्ठा के साथ सर्वोपरि है वहां ईश्वर का आशीर्वाद स्वयं हमारे कार्यों को पूर्ण करने में सहायक होते है।
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डॉ कुसुम शर्मा
नैनीताल