क्यों चुटकी बजाते हैं हनुमान

क्यों चुटकी बजाते हैं हनुमान




           हनुमान जी ने कहा, ”प्रभो! मैं तो निरंतर आपकी सेवा में रहना चाहता हूं। आपकी सेवा करके ही मुझे सुख-शांति प्राप्त होती है। मैं तो हरदम उस पल की प्रतीक्षा किया करता हूं कि आप मुझे कोई सेवा का अवसर प्रदान करें। परंतु यहां आकर तो मैं देखता हूं कि मेरे लिए जैसे कोई काम ही नहीं है । आप जो भी काम बताते हैं, वह या तो राजकर्मचारियों को बताते हैं या फिर प्रिय भरत, लक्ष्मण और शत्रुध्न को ही बताते हैं। मेरा तो नंबर ही नहीं आता। मैं किस प्रकार आपकी सेवा करूं। इसी कारण मेरा मन सदैव उद्विग्न रहता है। मेरी माता सीता जी भी मुझे कोई काम नहीं बताती। मैं सारे दिन, सारी रात खाली बैठा रहता हूं। ऊपर से प्रिय भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न आज माताश्री से कह रहे थे कि सारी सेवा मैं ही करता हूं। उन्हें तो सेवा का कोई अवसर ही प्राप्त नहीं होता। इस पर माता जानकी ने भी यही कहा कि मेरे कारण उन्हें भी प्रभु की सेवा का अवसर नहीं मिल पाता क्योंकि मैं हर समय आपके सामने हाथ जोड़े खड़ा रहता हूं।”
           ”हां! यह तो विचारणीय विषय है वत्स!” श्रीराम मुस्कराकर बोले, ”हम ऐसा करते हैं कि आज हम सीता से विचार-विमर्श करके शय्या त्याग से पुनः शय्या तक जाने के समय तक की एक सेवा तालिका बना लेते हैं। उन सेवाओं को हम सभी के बीच में बांट देंगे ताकि किसी को भी असंतोश व्यक्त करने का अवसर न मिले । क्यों हनुमान! ठीक रहेगा न ?” ”जैसी प्रभु की इच्छा!” हनुमान जी हाथ जोड़कर बोले, ”आप मुझे जो भी सेवा का अवसर देंगे, उसे मैं प्राण-प्रण से पूरा करूंगा।” रात्रि में, प्रभु श्रीराम ने सीता जी से विचार-विमर्श करके एक तालिका बना ली लेकिन उसमें प्रिय हनुमान का कहीं नाम नहीं था। दूसरे दिन उस तालिका पर प्रभु ने हस्ताक्षर करके राजमुद्रा लगाई और सभी भाइयों और राजकर्मचारियों में वितरित कर दी। हनुमान जी उस तालिका से पूरी तरह अनभिज्ञ थे। राजदरबार में प्रभु के उपस्थित होते ही हनुमान जी जब प्रभु की चरण सेवा के लिए आगे बढ़े तो भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न ने उन्हें रोक दिया और कहा कि प्रभु ने सेवा तालिका बना दी है और सभी को काम बांट दिया गया है। इस तालिका में आपका नाम कहीं नहीं है । इसलिए तुम प्रभु की सेवा से अलग ही रहो। हां ! इसके अलावा कोई सेवा तुम्हारी दृष्टि में हो तो तुम वह कर सकते हो। हनुमान जी ने कुछ पल सोचा और बोले, ”इस तालिका में भगवान श्रीराम को जम्हाई आने पर चुटकी बजाने की सेवा का उल्लेख नहीं है। यदि आप कहें तो मैं वही सेवा ग्रहण कर लूं ? प्रभु को जब जम्हाई आएगी मैं चुटकी बजाया करूंगा।” ”ठीक है!” लक्ष्मण ने कहा, ”तुम यह सेवा कर लो।” ”फिर मेरी इस सेवा पर भी प्रभु के हस्ताक्षर और राजमुद्रा लग जानी चाहिए।” हनुमान जी ने कहा। इसमें किसी ने भी आपत्ति नहीं की और प्रभु से उस तालिका में हनुमान द्वारा उनके जम्हाई आने पर चुटकी बजाने की प्रार्थना स्वीकार करा ली गई। तब हनुमान जी प्रभु के सामने वीरासन की मुद्रा में चुटकी तानकर बैठ गए और प्रभु का मुख देखने लगे। पता नहीं, प्रभु को कब जम्हाई आ जाए, इसलिए उन्हें हरदम सावधान रहना था।
           प्रभु राजकाज पूरा करके उठे तो हनुमान जी भी उनके साथ उठ लिए। वे चले तो हनुमान जी भी चुटकी ताने उनकी ओर देखते हुए चल पड़े। प्रभु रनिवास में जाकर बैठे तो वे भी उनके सामने बैठ गए। वे हर पल प्रभु का मुखारविन्द निहारते रहते थे। पता नहीं प्रभु को कब जम्हाई आ जाए और उन्हें चुटकी बजानी पड़ जाए। उन्हें तो बस अपनी सेवा की ही चिंता थी। प्रभु के भोजन के समय भी वे वहीं पर खड़े रहे और एकटक अपने प्रभु का मुख देखते रहे। प्रभु श्रीराम अपने प्रिय हनुमान की चतुराई को मन ही मन समझ रहे थे, पर वे कुछ बोल नहीं रहे थे।


 




           परंतु हर समय प्रभु के सामने हनुमान जी को खड़ा देखकर देवी सीता, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न बहुत परेशान थे कि उन्होंने हनुमान जी की यह बात क्यों मान ली? रात्रि आई और प्रभु शयन के लिए अपने शयनकक्ष में जाकर शय्या पर लेट गए तो हनुमान जी पास ही चुटकी ताने खड़े हो गए। आधी रात आने पर देवी सीता ने उन्हें बाहर जाने के लिए कहा तो उन्होंने अपनी सेवा की बात बताई। सीता जी ने समझा-बुझाकर हनुमान जी को वहां से भेज दिया । अब हनुमान जी क्या करें ? प्रभु को जम्हाई आने का कोई समय तो निश्चित है नहीं। यदि उनके पीछे प्रभु को जम्हाई आ गई तो वे अपनी सेवा से वंचित हो जाएंगे और उन्हें इस प्रकार पाप का भागी होना पड़ेगा । ऐसा सोचकर हनुमान जी शयनागार के पास एक ऊंचे छज्जे पर जा बैठे और प्रभु का नाम लेते हुए चुटकी बजाने लगे। उनकी चुटकी बजती रही और वे अपनी भूख-प्यास, निद्रा सब कुछ भूल गए। अब जब हनुमान जी की चुटकी बजने लगी तो वचन के अनुसार प्रभु को जम्हाई भी आनी थी । उन्हें जम्हाई आने लगी। प्रभु की जम्हाई अनवरत हनुमान जी की चुटकी के साथ चलती रही।
           इस दशा को देखकर सीता जी घबरा गईं। लगातार जंभाई लेने से प्रभु का मुख खुला का खुला रह गया। ”अरे ! यह क्या हो गया ?” सीता जी घबराकर माता कौशल्या के पास भागी-भागी गई और उन्हें बुलाकर लाईं । श्रीराम की यह दशा देखकर माता कौशल्या भी विचलित हो उठीं । एक-एक करके वहां सारे परिजन एकत्र हो गए। भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, उनकी माताएं और पत्नियां भी दौड़ी-दौड़ी चली आईं।
तत्काल वसिष्ठ जी को सूचना भेजी गई और राजवैद्य को बुलाया गया। प्रभु का मुख ज्यों का त्यों खुला ही रह गया था। उन्हें औषधियां दी गईं, पर उनके उपचार से कुछ भी लाभ नहीं हुआ। उधर हनुमान जी इन सभी बातों से बेखबर होकर पूरे आनंद के साथ प्रभु का नाम लेते जाते थे और चुटकियां बजा रहे थे। तभी वसिष्ठ जी ने पूछा, ”हनुमान जी कहां हैं ?” तब सीता जी ने रोते हए कहा, ”प्रभो ! हनुमान जी के साथ बड़ा अन्याय हुआ है। उनकी सारी सेवाएं छीन ली गई थीं। तब उन्हें मांगने पर प्रभु ने जम्हाई लेने पर चुटकी बजाने की सेवा दी है। मैंने रात्रि होने पर उन्हें प्रभु के कक्ष से निकाल दिया। अब वे कहीं भूखे-प्यासे प्रभु के स्मरण में विकल होकर चुटकी बजा रहे होंगे।” सीता जी की बात सुनकर वशिष्ठ जी तत्काल हनुमान जी को खोजने निकल पड़े। उन्होंने शयनागार के बाहर एक ऊंचे छज्जे पर बैठे हनुमान जी को कीर्तन करते और चुटकी बजाते देखा तो उन्होंने उन्हें हिलाकर सचेत किया। हनुमान जी ने वशिष्ठ जी को देखकर उनके चरण छुए और उनके आग्रह पर प्रभु श्रीराम के शयनकक्ष में आए। वहां उन्होंने प्रभु का खुला मुख और आंखों से अश्रु बहते देखे तो व्याकुल होकर उन्होंने चुटकी बजाना बद कर दिया और वे प्रभु के चरणों में गिर गए। हनुमान जी के चुटकी बजाना बंद करते ही प्रभु का मुख बंद हो गया और उन्होंने स्नेह से हनुमान के सिर पर हाथ फेरा। अब हनुमान जी और प्रभु दोनों ही सिसकियां ले-लेकर रो रहे थे। उनकी दशा देखकर सीता जी बोलीं, ”पुत्र हनुमान ! आज के बाद प्रभु की सभी सेवाएं तुम्हीं किया करोगे। तुम्हारी सेवा में कोई भी किसी प्रकार का दखल नहीं देगा।”
           हनुमान जी ने माता के चरणों में अपना सिर रख दिया और अपने अश्रुओं से उनके चरणों का प्रक्षालन कर दिया । सीता जी ने स्नेह से हनुमान जी के सिर पर हाथ फेरा । सभी उस दृश्य को देखकर अभिभूत हो गए। सभी ने देखा कि प्रभु श्रीराम अब मंद-मंद मुस्करा रहे थे।


सुभांगी
ऋषिकेश