बाबा के चमत्कार से आज भी अभिभूत हूँ


बाबा के चमत्कार से आज भी अभिभूत हूँ


        बाबा नीब करौरी महाराज आध्यात्मिक संसार के शीर्षस्थ महापुरूष थे। उनके इस संसार में बालकों का स्थान सर्वोच्च था, उत्तर भारत के प्रसिद्ध संतों में बाबा नीब करौरी जी महाराज बीसवीं शताब्दी के अर्द्ध शतक के मध्य में अपने चमत्कारों से तथा दयावान होने के कारण संतों की कोटि में शिखर पर रहे। वह भक्तों के घर और उन पर कृपा करने को स्वयं पहुँचते थे। बस उनको याद करने की देर थी; जो भी उनका स्मरण करता, उनका कृपा भाजन बन जाता। उनके इस स्वरूप से उनके भक्त बालक बडे़ प्रसन्न रहते थे और आज भी वह अपने भक्त बालकों पर बड़ी कृपा कर रहे हैं, यह स्वयं में एक सर्वेक्षण का विषय है। 
 मेरे पूज्य पिता स्व. राजकुमार दीक्षित बाबा के अनन्य भक्त थे और वह पनकी मन्दिर के निर्माण और देव प्रतिष्ठा के समय सम्पन्न हुए नगर भण्डारे के अवसर पर एक सेवक के रूप में श्री महाराज जी के सान्निध्य में आये तब से आजीवन समर्पित रहे।



        कानपुर में पी. रोड स्थित गाँधीनगर में हमारे आवास कंचन भवन पर बाबा जी पधारे थे, वह आज भी कंचन-भवन के नाम से जाना जाता है। मेरा जन्म कानपुर में ही हुआ और सन् 1964 में मुझे पिता श्री ने बिड़ला विद्या मन्दिर नैनीताल में पढ़ने के लिए भेज दिया। वह भी इस बालक पर बाबाजी की विशेष कृपा ही थी कि मैं उनके आध्यात्मिक प्रभामण्डल के दायरे में था। मेरा बालक मन बाबा के प्रताप से आज भी अभिभूत है। जून 1964 में नैनीताल बिड़ला मन्दिर का छोटा सा विद्यार्थी, जिसके फुटबाल खेलते समय दाहिने पैर में जबरदस्त चोट आ गई थी और इस कारण नैनीताल के रामजे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। चिकित्सकों ने अन्ततः चोट की गम्भीरता देखते हुए, छः माह की अवधि में ठीक होने का आश्वासन दिया था। अतः मुझे छः माह के लिए भर्ती करके इलाज शुरू कर दिया गया। अभी एक ही सप्ताह बीता था कि चमत्कारी बालबन्धु बाबा नीबकरौरी जी महाराज, मुझे नहीं मालूम, कब मेरे पलंग के पास आकर खडे़ हो गये और मुस्कारते हुए मेरे मस्तक पर हाथ फेरने लगे। मुझसे उन्होंने जब हालचाल पूछा; तो मैंने अपने असहनीय दर्द का हाल कह सुनाया। महाराज जी ने मेरे सिर पर पुनः हाथ फिराया और मुस्कारते हुए बोले ''तुम बहुत जल्दी चलने लगोगे और दर्द भी दूर हो जायेगा।'' पास में खडे़ डाक्टर के कान खड़े हो गए। वह कहने लगा ''बाबा यह नितान्त असम्भव है।'' महाराज जी ने फिर चलते हुए कहा, कि यह बच्चा कल चलने लगेगा और महाराज जी यह कहकर आँखों से ओझल हो गये।
        दूसरे दिन सुबह नर्स ने नित्य कर्म से निवृत्त करवा कर कपडे़ बदले और मुझे खेलने के लिए एक खिलौना दिया। जब मैं खिलौने से खेल रहा था तो वह पलंग से नीचे गिर गया और उसे उठाने के प्रयास में मैं पलंग से नीचे गिर पड़ा। मेरे गिरते ही नर्स आ गयी। वार्ड वॉय ने चिल्लाकर डाक्ॅटर को बुला लिया; लेकिन उन्हीं क्षणों में मुझे बाबा जी पुनः उपस्थित दिखाई दिए और बोले स्वयं उठो और चलो। मैंने स्वतः उठने का प्रयास किया और दो चार कदम चलकर ज्योंही आगे बढ़ा डॉक्टर ने मेरा हाथ पकड़ लिया, मैं डॉक्टर से कहने लगा कि अब मेरे पैर में बिल्कुल दर्द नहीं है। मैंने जब इधर-उधर देखा तब तक महाराज जी अदृश्य हो चुके थे। यह मेरे बाल जीवन की आश्चर्य कर देने वाली घटना है।


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प्रदीप दीक्षित 
कानपुर 
9336344900