भगवत कृपा से ही मिलते हैं भगवान


भगवत कृपा से ही मिलते हैं भगवान



    शब्द से भाव उत्पन्न होते हैं। भाव से भक्ति उत्पन्न होती है। भक्ति से भगवतकृपा होती है और भगवतकृपा से भगवान प्राप्ति होती है। जीवन में ''शब्दां'' का चयन बहुत सोच समझकर करें। यदि आपके ''शब्द'' अनुरूप आकर्षक, कर्णप्रिय होंगे तो यकीनन लोग आपके शब्दों को सुनना पसन्द करेंगे या आपकी बात को सुनना पसन्द करेंगे। सबसे पहले तो लोग आपके शब्दों की ओर आकर्षित होंगे फिर आपका अनुसरण करेंगे। इसी प्रकार से समाज में बहुत ही मनमोहक व सकारात्मक बदलाव आएगा।



    यही वह ''शब्द'' हैं जो ईश्वर को व ईष्टदेव को भी आकर्षित करते हैं। उन्हें आनन्दित करते हैं। उन्हें आकर्षित करते हैं। उन्हें हमारे समीप लाने को बाध्य करते हैं। अक्सर जब कभी बेटा या बेटी रिश्तेदार बीमार होता है या परेशान होता है तो हम ईश्वर से या ईष्टदेव से प्रार्थना करते हैं कि बेटे-बेटी या माता-पिता को ठीक कर दो। जब हम अपने शब्द प्रयोग में लाते हैं तो स्वाभाविक है ईष्टदेव कहेंगे कि तेरा है तो तू जाने। किन्तु हम यदि यह कहते हैं कि अपने बच्चे को ठीक कर दो उसकी परेशानी दूर कर दो तो मुमकिन है कि प्रार्थना स्वीकार हो जाए। शब्दों में संयम रखते हुउ व्यवहार करें। शब्दों पर संयम रखते हुए ही प्रार्थना आदि करें। शब्दों की सहजता से आने वाले समय में ऐसा लगने लगेगा कि जो शब्द किसी के बेहतरी के लिए उपयोग करते हैं। ईश्वर जल्दी सुनवाई कर लेता है।
शब्दों का उत्तम चयन ही आपको विनम्र बनाता है। आपका विनम्र होना आपके ईष्टदेव की कृपा प्रसाद का परिचायक है। जितने उत्तम शब्द होंगे वैसे ही विचार होंगे। जैसे विचार होंगे वैसे ही व्यवहार होगा और आपका व्यवहार की ईष्टदेव की पहचान है।
आज से ही जीवन में शब्दों की महत्ता समझते हुए शब्दों पर नियंत्रण रखें। इसी संदर्भ में कुछ शब्द और प्रयोग करना चाहूंगा। यदि जीवन में कभी कोई परेशानी आ जाए, स्थिति पूर्णतया प्रतिकूल हो, शत्रु वाद विवाद की स्थिति में हो तो ईष्टदेव को याद करके वहां मौन धारण कर लें। मौन बहुत शब्दों से ज्यादा प्रभावी होगा।
जीवन में शब्दों पर संयम रखें।
शब्दों का चयन सोच समझकर करें। 
बाबा नीब करौरी जी के विशेष कृपापात्र बनें।
जय गुरुदेव, जय गुरुदेव, गुरुदेव 
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श्रेयांश जैन, दिल्ली