संपादक की कलम से


संपादक की कलम से
प्रथम पूज्य गुरुदेव हमारे...


            मानव जीवन में गुरु का दर्जा भगवान से भी बड़ा है। बिना गुरुकृपा के प्रभु से निकटता संभव ही नहीं है. जिसको जितनी जल्दी सद्गुरु का आशीर्वाद मिल जाता है वह उतना ही भाग्यशाली होता है। प्रभु कृपा का प्रसाद पाने का रास्ता गुरु ही बताता है. इस मायावी संसार से मोहभंग किये बिना ईश्वर से सामिप्य के बारे में सोचना दिवास्वप्न के सिवाय कुछ नहीं। खुली आँखों से जो भी दिखाई देता है, वह सब नश्वर है, क्षणिक और दुःख देने वाला है। गुरु ऐसा कुम्हार है जो संसार में भटकते प्राणी का हृदय परिवर्तन कर उसके मन में भक्ति का ऐसा भाव जगा देता है जिसमें वह डूब जाता है और फिर उसे सत्संग, प्रभु कथा, भगवत चर्चा या ध्यान आदि में आनंद आने लगता है। इसे गुरुकृपा का श्रीआरम्भ माना जाता है। मन ज्यों-ज्यों प्रभु चिंतन में लीन होता जाता है, त्यों-त्यों सांसारिक मायामोह छूटने लगता है। घर-परिवार की चिंता भी कम होने लगती है। जीवन के सारे कार्य प्रभु को समर्पित करने की इच्छा प्रबल होने लगती है। यह गुरु के आशीर्वाद का अगला चरण होता है। भक्त और भगवान के बीच पड़ा माया का पर्दा हटा देना ही गुरु से मिलने वाला वरदान होता है। दुनिया में गुरुओं की कमी नहीं है, एक ढूढ़ो, दस खड़े हैं। लेकिन सच्चा गुरु मिलना भाग्य की बात है। ठगने या पथभ्रष्ट करने वाले गुरुओं की बाजार है। सद्गुरु विरले हैं। उनका आशीर्वाद भी प्रभु कृपा से ही मिलता है। सच्चा गुरु मिल गया मानो भगवान मिल गये। आपकी सारी परेशानियां व कष्ट गुरु खुद ब खुद दूर करता रहता है। यही सद्गुरु की विशेषता है। सच्चा गुरु वही है जो हमारी बुराइयाँ दूर कर मन में अच्छाई पैदा करे। बुरे विचारों से सावधान करते हुए मन में अच्छे विचार पैदा करे। समाज में व्याप्त बुराइयों, अनाब शनाब तरीके से ज्यादा से ज्यादा धन जुटाने की हवस, तामसी भोजन की बढ़ती प्रवृति और विचारों की गंदगी से कम ही लोग बच पाते हैं। कलियुग का प्रभाव कमोवेश सभी पर पड़ना स्वाभाविक है। लेकिन गुरु कृपा से भक्तजन इस कुप्रभाव से बच जाते हैं। धार्मिक, आध्यात्मिक व पौराणिक स्थलों पर जाने के मौके तलाशें। संत-महात्माओं की संगत करें। वेद, पुराण, उपनिषद न सही, गीता व राम चरित मानस का पाठ करें। हनुमान चालीसा और सुन्दर कांड के पाठ को दिनचर्या का हिस्सा बनायें। राम व हनुमान नाम का जप करने से आध्यात्म के प्रति रुचि बढ़ती है।
            मन संसार से हटकर आध्यात्म में रमने लगे तो समझ लेना चाहिए कि गुरुकृपा हो गयी मतलब जीवन सफल हो गया। गुरु से तात्पर्य यह कतई नहीं है कि वह साधु ही दिखता हो, तीर्थ पर ही रहता हो, लम्बी दाढ़ी व लम्बे बाल वाला ही हो या फिर प्रवचन करना अनिवार्य हो। गृहस्थ संतों की भी अपनी परम्परा रही है। निरंतर साधना व तप से अर्जित भक्ति की शक्ति से भक्तों का कल्याण करने वाले गुरु से मिलवाना प्रभु कृपा का प्रसाद है। ज़ब तक ईष्ट देव के प्रति सच्ची लगन व समर्पण भाव मन में नहीं जगेगा तब तक सद्गुरु से मिलना ही मुमकिन नहीं। घर परिवार में भी निर्लिप्त भावना से रहने का अभ्यास डालें, बड़ी शांति मिलेगी। गुरु का साथ कभी न छोडें, वह शरीर छोड़ दें, तब भी नहीं। संत महात्मा कहीं जाते नहीं। वह भक्तों को हमेशा अपने होने का एहसास कराते रहते हैं।