राम नाम ही मोक्ष प्राप्ति का साधन


राम नाम ही मोक्ष प्राप्ति का साधन


           यात्रा के दौरान प्रायः विभिन्न स्थानों पर 'सावधानी हटी, दुर्घटना घटी' संकेतात्मक वाक्य के माध्यम से हमें सदैव सावधान रहने की हिदायत दी जाती है। बिल्कुल इसी तरह जीवन रूपी यात्रा में भी हमे सावधान रहने की महत्ता बताई गई है। धर्मशास्त्रों के अनुसार मानव रूपी जीवन अत्यंत दुर्लभ है। यह सुन्दर तन पाकर भी जो मनुष्य सत्कर्म न करके एवं धर्मशास्त्र के बताए मार्ग के विपरीत कार्य करें उससे बड़ा दुर्भाग्यशाली भला कौन हो सकता है। ऋषियों-मुनियों एवं विद्वान महापुरुषों ने मानव योनि को मोक्ष प्राप्ति का सबसे बड़ा माध्यम बताया है।
           आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति तक एक लम्बी यात्रा तय करनी होती है। और इसके लिए विभिन्न योनियों में आत्मा को जन्म और मृत्यु के अनेक चक्र से गुजरना पड़ता है। प्रारब्ध के सत्कर्म एवं पुण्य के प्रभाव से जीवात्मा को मानव तन मिलता है। सरल शब्दों में कहें तो सम्भवतः मोक्ष के दरवाजे में लगे ताले की चाभी के लिये ही यह शरीर जीव को अनन्त कोटि ब्रम्हांड नायक श्री हरि ने प्रदान किया है। और इस यात्रा में मन को भौतिक तत्त्वों से बचने के लिए हमे सावधानी पूर्वक एवं पूर्ण विश्वास से पवित्र धर्मशास्त्रों का सहारा लेना चाहिये।
           जगत नियंता श्री प्रभु जी के मनुज रूप में अवतार लेने एवं नरलीला करके उत्तम जीवन जीने की शैली का बड़ा ही सजीव चित्रण रामचरितमानस में मिलता है। बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी राम चरित मानस में भी विभिन्न प्रसंगों एवं संवाद में कुल दस बार सावधान शब्द का प्रयोग किया है। अस्तु, आप सभी भी सावधानीपूर्वक अवगाहन करें।




बालकाण्ड के दोहा 121वें की तीसरी चौपाई ,
जनम एक दुइ कहउँ बखानी
सावधान सुनु सुमति भवानी!!
मैं भगवान शिव, माता पार्वती जी को श्री हरि  की लीला का वर्णन करते हुए सावधान होकर सुनने को कहते हैं।
बालकाण्ड के दोहा सं.185 वें में ब्रम्हाजी के श्रीमुख से कि,
सुनि बिरंचि मन हरष तन, पुलकि नयन बह नीर!
अस्तुति करत जोरि कर,सावधान मति धीर!!
अयोध्याकाण्ड के दोहा स.273/4 चौपाई
सावधान सबही सन मानहिं !
सकल सराहत कृपा निधानहिं !!
श्री रामजी स्वयं सावधानीपूर्वक सभी का सम्मान करते है, जिसकी अवध में चहुँ ओर प्रशंसा हो रही है।
अरण्यकाण्ड के 19वां दोहा (प्रभु एवं खरदूषण से युद्ध प्रसंग)
सावधान होई धाए, जनि सबल आराति!
लागे बरसन राम पर,अस्त्र सस्त्र बहु भांति!!
अरण्यकाण्ड के दोहा 34की 7वी चौपाई
में (स्वयं प्रभु श्रीराम जी के नवधाभक्ति का वृतान्त)
नवधाभगति कहउँ तोहि पाहीं!
सावधान सुनु धरु मन मांही !!
अरण्यकाण्ड के दोहा स.44 की 9विन चौपाई (प्रभु श्री रामजी एवं नारदजी का प्रसंग)
सावधान मानद मद हीना !
धीर धर्म गति परम प्रवीना !!
सुंदरकांड के 32वे दोहे की न.3 चौपाई
(श्री रामजी एवं श्री हनुमानजी की सन्निकटता का प्रसङ्ग)
सावधान मन करि पुनि संकर!
लागे कहन कथा अति सुंदर!!
उत्तरकाण्ड के  दोहा 77ख/3 चौपाई में कागभुशुण्डि के द्वारा भगवान के वाहन श्री गरुण जी को प्रभु की कथा सुनाते हुए)
नाथ इहाँ कछु कारन आना !
सुनहु सो सावधान हरिजाना !!
उत्तरकाण्ड के दोहा स.86वें में
(कागभुशुण्डि जी एवं गरुण जी का संवाद प्रसंग)
सुचि सुसील सेवक सुमति, प्रिय कहु काहि न लाग !
श्रुति पुरान कह नीति असि, सावधान सुनु काग!!
और
उत्तरकाण्ड के दोहा स.144की 14वी चौपाई
(कागभुशुण्डि जी एवं गरूण जी का कथा प्रसंग)
नाथ मुनीस कहहिं कछु अन्तर!
सावधान सोउ सुनु बिहंगवर!!


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इन्द्र नारायण तिवारी
कुशभवनपुर, सुल्तानपुर 
मो.- 94500 42446