जब डीएम को मांगनी पड़ी भक्त से माफ़ी
ब्रिटिश आर्मी में वाइसराय कमीशन आफीसर हरनाम सिंह रावलपिंडी में तैनात थे। देश विभाजन के बाद नौकरी छोड़ दी और काठगोदाम में बस गये। वहीं पता चला कि कैंची में नीब करोरी संत हैं। उनसे मिलने गये, ज़ब से बाबा जी के दर्शन हुए, उन्हीं के होकर रह गये। मन में हनुमान जी व राम जी की लौ जग गयी। सिख होने के बावजूद ऐसी प्रेरणा मिली कि राम- हनुमान जपने लगे। राम दूताय नमः का जाप जीवन का हिस्सा बन गया। हरनाम सिंह के बेटे परमजीत सिंह कपूर बताते हैं कि वर्ष 1964-65 में बाबा जी उनके घर आये। घर का दरवाजा छोटा था तो पास के पेट्रोल पंप पर बैठ गये और खूब बातें की। उन्होंने बताया कि एक बार पिता जी कचहरी के काम से बरेली गये थे। वहीं पता चला कि डीएम की कोठी में बाबा जी आये हैं। कचहरी का सारा काम छोड़कर वह भागते दौड़ते डीएम की कोठी पर पहुंचे और गेट पर तैनात दरोगा से पूछा कि कोठी में बाबा जी आये हैं। जवाब देने के बजाय दरोगा ने पिता जी को गेट से भगा दिया।
निराश होकर पिता जी गेट के सामने सड़क पार करके वहीं बनी पुलिया पर बैठकर बाबा जी के दर्शन का इंतजार करने लगे। उधर, अन्तर्यामी बाबा को पता चल गया कि उनके भगत को अंदर आने से रोक दिया गया है। उन्होंने डीएम से कहा कि तेरा दरोगा बहुत अहंकारी है, उसने मेरे भक्त को गेट से भगा दिया है। तुरंत जाओ और सड़क के उस पार पुलिया पर बैठे भक्त को सम्मान के साथ अंदर लाओ। बाबा का आदेश सुनते ही डीएम दौड़ते-हांफते गेट पर आये और दरोगा को खूब डांटा फिर पिता जी से माफ़ी मांगते हुए सम्मान के साथ अंदर ले गये। पिता जी को देखते ही बाबा जी ने कहा कि मेरे बेटे, आ मेरे पास आ जा। बेटे को प्रसाद खिलाओ। बरेली से काठगोदाम के लिए साढ़े चार बजे बस थी। बाबा जी ने डीएम से कहा, इन्हें बस अड्डे तक भिजवाओ। परमजीत सिंह ने बताया कि एक बार पिताजी ने माता जी से कहा कि कैंची जाकर बाबा जी से कहूंगा कि हमें राम जी के दर्शन कराओ। पिता जी के साथ हम भी कैंची गये थे। पिता जी को देखते ही बाबा जी ने कहा, हरनाम आ जा। आजकल हम राम के यहाँ नहीं, कृष्ण के यहाँ जाते हैं। इतना सुनते ही पिताजी रो पड़े और कहा कि आपके दर्शन हो गये मानो सबके दर्शन हो गये।
उन्होंने बताया कि एक बार पिता जी रात में जग कर मंदिर चले गये। घर के सभी लोग ढूंढ-ढूढ़ कर थक गये। सुबह घर लौटे तो बताया कि रात में हनुमान जी को देखकर वह डर गये थे इसीलिए मंदिर चले गये थे। उन्होंने बताया कि ज़ब पिता जी की मृत्यु हुई तो पता नहीं क्यों घर के ऊपर खूब रौशनी हुई और काफ़ी साधु संत न जाने कहां से आ गये। फिर भोज में भी काफ़ी ऐसे साधु आये, जिन्हें कोई नहीं पहचानता था। परमजीत सिंह बताते हैं कि उन्होंने ज़ब से होश संभाला है, बाबा जी का आशीर्वाद मिला। उन्होंने बाबा जी के पैर भी दबाये हैं। तीन साल पहले गुरु पूर्णिमा पर्व पर पत्नी पूनम कपूर, बेटी डाक्टर जसलीन कौर कपूर व बेटे जसकरन वीर सिंह के साथ कैंची धाम गये थे। बेटी को बीडीएस परीक्षा पास करके इंटर्नशिप करनी थी। वह मुरादाबाद से इंटर्नशिप न करके लखनऊ मेडिकल कॉलेज से करना चाहती थी। कैंची आने से पहले ही कहा था बाबा से प्रार्थना करेगी। बाबा की कृपा से वहीं लखनऊ से आये परिचित वकील मिल गये। उनसे बेटी की इच्छा बताई। वकील के साथ प्रमुख सचिव (आवास विकास) आये थे। उन्होंने कहा तुरंत फोन लगाओ। बाद में बेटी का मन बदल गया और लखनऊ के बजाय दिल्ली से इंटर्नशिप करने को कहने लगी। फिर बाबा जी की कृपा से दिल्ली के डीएसआई अस्पताल में खूब काम सीखा और अब हल्द्वानी के साईं हॉस्पिटल में डेंटल सर्जन है।
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सतगुरु का लगातार ध्यान करना ही मालिक का दर्शन करना है। हम भले ही सतगुरु से दूर बसते हैं पर उन का ध्यान करने से हमारी आत्मा शब्द रूपी घोड़े पर सवार होकर अपनी इच्छा से उनके पास जा और आ सकती है जब शिष्य हर पल अंदर सतगुरु के ध्यान में लगा रहेता है तो वह मालिक उसके हृदय रूपी घर मे ही प्रकट हो जाता है।
रोज-रोज 'भजन-सिमरन' करने से, धीरे-धीरे हमारे अंदर इतनी 'सहनशीलता' आ जाती है, कि हम बिना संतुलन खोए, जीवन में आने वाले 'उतार-चढ़ाव' का सामना करने लगते हैं।
हमें इस बात का 'ज्ञान' होने लगता है, कि जो कुछ भी हो रहा है, वह हमारे 'कर्मों' के अनुसार ही हो रहा है। और 'सतगुरु' हमेशा हमारे अंग-संग हैं।
राम राम राम राम राम राम राम राम राम
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परमजीत सिंह कपूर
हल्द्वानी, उत्तराखंड