ज्ञान प्राप्ति के लिए हनुमान भक्ति जरूरी


ज्ञान प्राप्ति के लिए हनुमान भक्ति जरूरी


 


आज की इस विषम परिस्थिति में मुनष्य मात्र के लिए, भगवान हनुमान की उपासना अत्यन्त आवश्यक हैं। रूद्रावतार भक्त शिरोमणी हनुमान जी बल, बुद्धि, वीर्य प्रदान करके भक्तों की रक्षा तो करते ही है। साथ ही साथ अपार धन जन सुख सम्पदा व प्रसन्नता भी प्रदान करते हैं। भूत, प्रेत, पिशाच नाम लेते ही भाग जाते है। इसका प्रमाण मेंहदीपुर बाला जी है। उनके स्मरण मात्र से अनेक असाध्य रोग समाप्त हो जाते है। मैं पूर्ण विश्वास के साथ हनुमान भक्तों के लिए ''हनुमत कृपा'' आप लोगों तक पहुंचाने का दृढ़ संकल्प लिया हूँ। रूद्रावतार श्री हनुमान जी का परिचय लिखना तो सूरज को दीप दिखाने के समान होगा।।
'' नमो हनुमते तुम्यं नमों मारूत सुतवे
नमो श्री राम भक्ता श्यामा श्याम चले नमः''
हे हनुमान जी आपको बारम्बार नमस्कार है। हे मारूति नन्दन आपको मेरा प्रणाम
हनुमत उपासक की योग्यता :- शास्त्रों में कहा गया है कि उपासक को शीलवान, विनम्र, निश्छल, श्रृद्धालु, धैर्यवान इन्द्रिय संयमी और कुल प्रतीष्ठा का पोषक होना चाहिए। नियमपूर्वक बिना क्रम तोडे बराबर हनुमत उपासना करता है वह उपासक सही है। जिस प्रकार ध्यान धारण और समाधि के प्रभाव से रूद्रादिका सर्वाधिक सम्मान है। उसी प्रकार हनुमान जी अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन से अधिक पूजित एवं प्रसिद्ध है। इसी कारण इनकी उपासना सर्वत्र होती है।
 कहा जाता है। कि सभी मंदिरों में पूजा आरती के बाद प्रसाद चरणामृत वितरण किया जाता है। मगर हनुमान जी रूद्रावतार को श्री हनुमान जी के चरणाभूत का प्रचार कम है।



'' सिन्दूर से प्रभु आपका करता हूँ सम्मान
भक्ति को शक्ति मिले मांग रहा वरदान
धन जन दे प्रभु कामना हे जग के करतार
मैं बालक अज्ञान हूँ चमका दे संसार''
 जब तक मनुष्य को ज्ञान नही ंतब तक वह अन्धे के समान है। इसलिए जीवन मेंं मनुष्य को जितना जितना ज्ञान मिलता जाता है। वह उतना ही दुःख से बचता और सुख के निकट आता जाता है। अन्त में एक दिन वह पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेता है। और सम्पूर्ण दुःखों से छूट पूर्ण आनंद प्राप्त करता है। मालदार लोग नित्य दान करते है। कहां से लाते है? ऐसी विषम परिस्थिति में एकाग्र चित होकर हनुमानं जी का ध्यान करे वही सब दुःखों से पार कर आपके जीवन में नई जान डाल देंगे। जौनपुर के गोमती तट (शाही पुल) के रास्ते हनुमान मंदिर जीता जागता प्रमाण है। द