गुरुदेव में ही होते हैं सभी देवताओं के दर्शन
गुरु ही ब्रह्मा, गुरु ही विष्णु, गुरु ही महेश्वर
सब देवताओं के अगर हम दर्शन करना चाहते हैं तो हमें कहीं जाने की आवश्यकता नही। अपने गुरु मुख को ही निहार लीजिये, वहीं आपको दर्शन हो जायेंगे। जब प्रभु स्वयं अपना प्रतिरुप धरती पर भेजते हैं तो वही गुरु रूप होता है। गुरु बिना गति नहीं, गुरु धारण करना परम आवश्यक है, नहीं तो भगवान के घर भी ठौर नही है! बाबा नीब करौरी एक ऐसे सन्त हुए, जिन्हें गुरु रुप में पाना हमारा परम सौभाग्य है। मनुष्य रुप में प्रभु स्वयं बाबा नीब करौरी बनकर धरा पर अवतरित हुए और हम उन्हें गुरु मानते रहे। साक्षात बह्म का अवतार हैं बाबा जी। भक्त अपने ईष्ट के दर्शन बाबा जी में करते हैं। कभी राम, कभी हनुमान, कभी कृष्ण, कभी माँ दुर्गा, कौन सा रूप नहीं जिसके दर्शन भक्तों को न दिखा हो बाबा में, बाबा जी हमेशा कहा करते थे, “पानी पीना छान कर, गुरु करना जान कर।
अर्थात, गुरु को हमेशा ठोक बजाकर परखो, और जब तुम्हारे मन को तृप्ति मिले, आनन्द मिले तब ही उसे तुम अपना गुरु धारण करो! जिसके मिलने से तुम्हारी आत्मा तुम्हें उत्तर दे कि हाँ, यही वह चरण हैं जहाँ मुझे अपना सर्वस्व समर्पण करना है! गुरु हमारे जीवन का आधार है। जिस पर न जाने हमारे कितने जन्मां की इमारत टिकी है। यह कोई एक जन्म का नाता नहीं, जन्मों का बन्धन है। जाने कितने जन्मों से वह हमें सम्भाले हैं! इसलिये अगर अपनी जीवन रुपी नाव को किनारे लगाना है तो उस पतवार को अपने गुरु के हाथ में दे दीजिये और निश्चिंत हो जायें! गुरु का साथ और गुरु कृपा बहुत भाग्यशाली लोगों को मिलती है। बाबा जैसे गुरु जिसे मिल जायें, उसकी नैया तो पार ही है।
बाबा नीम करौरी जी, अपने भक्तों को स्वयं ढूढ़ते हैं। उनकी इच्छा शक्ति के बिना कोई उनके नजदीक नहीं आ सकता, और जिस पर दृष्टि डाल दी, वह तो कई जन्मों को बंध गया बाबा के साथ, और बाबा का ये वचन है कि, “जिसका हाथ हम एक बार पकड़ लेते हैं उसे हम कभी नहीं छोड़ते!“ और कोई कितनी भी मैली गागर क्यां न हो अगर बाबा की इच्छा उस पर कृपा करने की हो गयी तो वह कुपात्र को भी सुपात्र बना देते है। हमेशा तिरस्कृतों को बाबा ने उपर उठाया चाहे वह जमीन हो या व्यक्ति। उनकी लीला को कोई समझ नहीं पाया। लीलधर आज भी लीला करते रहते है। कोई यह सोचने की भूल न करे कि बाबा शरीर में नहीं हैं, बाबा आज भी मौजूद हैं और देश विदेश में भक्तों को दर्शन देकर उनका मार्गदर्शन भी कर रहे हैं। महान सन्तों को शरीर की आवश्यकता नहीं होती, वह सक्षम शरीर में ही विचरण करते है। शरीर में रहकर वह एक परिधि में बंध जाते है और शरीर छोड़कर वह अपनी शक्तियों का खुलकर उपयोग करते है। तो बाबा आज भी अपने भक्तों का कल्याण कर रहे हैं।
इस गुरु पूर्णिमा पर हम उन्हें यही भेंट अर्पण कर सकते हैं कि हमेशा उनकी आज्ञा का पालन करें, बाबा हमेशा कहा करते थे कि, “सबसे प्रेम करो, भूखे को भोजन कराओ, सब की सेवा करो, राम नाम का जाप करो, हमेशा पूर्ण सत्य बोलो, गुरु आज्ञा में रहकर ही हम गुरुकृपा प्राप्त कर सकते हैं।
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पूजा वोहरा, दिल्ली