आस्था व विश्वास से बढ़ती हनुमानजी की भक्ति


              एक समय ऋष्यमूक पर्वत पर केसरी वानर-राज की सती साध्वी अंजना माता नाम की भार्या ने पुत्रप्राप्ति के लिए आशुतोष भगवान शंकर की कठिन तपस्या सात हजार वर्ष की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा तब अंजना जी ने वरदान में शिव जी से पुत्र प्राप्ति वरदान की अभिलाषा की। तब भगवान शिव ने कहा कि आंख बंद करके हाथ फैला कर ध्यान में मग्न हो, आपकी अंजलि में पवनदेव द्वारा प्रसाद रख कर अंतर्ध्यान हो जाऊंगा तब आप उस प्रसाद को ग्रहण कर लीजियेगा। निश्चित ही एकादश रुद्रवतार परम तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी।इसी बीच चक्रवर्ती राजा दशरथ के यज्ञ में कैकेई के हाथ से एक चील पिण्ड लेकर आकाशमार्ग से उड़ गयी उसी समय भयंकर आंधी तूफान के वेग के कारण पिण्ड चील के मुख से छूट कर वायु द्वारा अंजनी जी के अंजलि में गिरा प्रसादरूपेण उस पिण्ड को तुरंत अंजनी जी ने खा लिया। नवमास पश्चात अंजना जी के गर्भ से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार को मौंजी, मेखला, कौपीन, यज्ञोपवीत एवं कानों में कुंडल धारण किये हुए मूंगे के समान रक्तवर्ण वाले मुख व पूछ युक्त बालक का जन्म हुआ। अत्यंत भूख से व्याकुल हो कर रोने लगे। अंजना माँ बालक के लिए फल लेने रसोई में गयी तभी भूख से अत्यंत व्याकुल बालक की दृष्टि उगते सूर्य पर पड़ी रक्तवर्ण सूर्य को लाल फल समझ कर आकाश को ओर सिंह समान गर्जना करते हुए उसे खाने को आतुर हो कर आकाश की ओर उछल पड़े यह देख कर समस्त पर्वत विचलित हो गए दासों दिशाएं रक्तवर्ण की हो गयी उसी समय दैवयोग से राहु सूर्य को ग्रस रहे थे बालक ने राहु को पूछ की चोट से घायल कर मूर्छित कर दिया। राहु इंद्रदेव से सहायता मांगने भागे इंद्रदेव को सारा व्रतांत सुना दिया। सारा व्रतांत सुनते ही इंद्रदेव ने प्रधान अस्त्र, वज्र, देवताओं की समस्त सेनाओं को लेकर राहु के साथ उस बालक की तरफ चल दिये। इधर बालक ने जब सूर्य को पकड़ा तब जाना ये फल नहीं है तत्क्षण उसका परित्याग करके अपनी माँ अंजना के पास आने लगे तभी बीच मार्ग में ही इंद्र द्वारा समस्त सेना के साथ भयंकर युद्ध हुआ बालक ने राहु सहित सभी सेना को युद्ध मे परास्त कर दिया इंद्र ने व्याकुल हो कर अपने वज्र द्वारा बालक की (हनु)दाढ़ी पर प्रहार किया उस प्रहार से बालक मूर्छित हो गया तीनो लोक में हाहाकार मच गया पवनदेव पुत्र को मूर्छित देख कर देवताओं को अत्यंत क्रोध से ललकारा की जिसने मेरे पुत्र को मारा है ऐसे इंद्र को तत्क्षण मैं मार डालूंगा। समस्त चराचर के प्राण वायु रूप में मैं ही हूँ, अगर मेरा पुत्र जीवित न हुआ तो सभी देवताओं को नष्ट कर दूंगा। ऐसा कह कर सभी चराचर से वायु ऊपर की तरफ खिंचने लगे वायु के खिंचने से व्यकुल हो कर सभी देवता पवन देव के क्रोध की शान्त करने के लिए प्रार्थना कर लगे तत्पश्चात विष्णु जी ने पवनदेव से कहा कि -हे पवनदेव पूर्ण पिण्ड से उत्पन्न आपका यह पुत्र अत्यंत निर्भय तथा ब्रम्हा के कल्प पर्यंत चिरंजीवी होगा।।



              शिव जी ने कहा-मेरे तीसरे नेत्र से उत्पन्न अग्नि जी शत्रुओं को भस्म करती है वह अग्नि भी इस बालक का अनिष्ट नही कर सकेगी।
              ब्रम्हा जी ने कहा- हे मरुत आज से मेरे ब्रम्हास्त्र, ब्रम्हदण्ड, ब्रम्हपाश तथा अन्य शस्त्र भी इस बालक का अनिष्ट नही कर सकेंगे।
              इंद्रदेव ने कहा- पवन देव आपके पुत्र को वरदान देता हूँ आज से मेरा अमोघ वज्र भी आपके बालक पर कोई प्रभाव नही दिखा पायेगा। इसका शरीर निश्चय ही वज्र के समान होगा। इस बालक की दाढ़ी पर मेरे वज्र द्वारा प्रहार के कारण आपके पुत्र का नाम हनुमान होगा।
कुबेर जी ने कहा- आपके पुत्र द्वारा सभी असुरों का नाश होगा।
              वरुण जी ने कहा- आपका पुत्र मेरे समान शक्तिशाली होगा भयंकर से भयंकर युद्ध मे भी थकावट का अनुभव इसको नही होगा। उसी समय विश्वामित्र जी ने भी कभी न मुरझाने वाली खिले कमल की माला हनुमान जी के गले मे पहना दी।समस्त देवता वरदान दे कर देवलोक को चले गए।
अभी हमने हनुमान जी के जीवन चरित्र को संछिप्त रूप में जाना। जब हम ईश्वर प्रेम करते है तब हममें जिज्ञासा उत्पन्न होती है उनके चरित्र को जानने की हमने जो पढ़ कर संग्रह किया आप सब तक प्रसाद रूप में बांट दिया। ईश्वर से प्रेम के बाद बात आती है श्रद्धा और विश्वास की जब हमको अपने इष्ट पर अत्यधिक निष्ठा होती है तब प्रेम उपजता है अत्यधिक प्रेम से ईश्वर में विश्वास दृढ़ होता है विश्वास अत्यधिक दृढ़ होने पर हमको ईश्वर की करुणा अनुभव होना शुरू हो जाती है जिसे हम अपने जीवन मे देखते भी है। एक सत्य घटना मेरे जीवन मे घटित हुई मेरी मौसी के बेटे को गम्भीर बीमारी हुई जिसका इलाज एम्स में चल रहा था टीबी हुई थी उसको पहले सर में फिर हड्डी में हो गयी पूरे शरीर मे बीमारी ने पूरी तरह जकड़ लिया। चार वर्षों से इलाज चल रहा था कोई भी लाभ नही हो रहा था बल्कि हालत और नाजुक हो रही थी। मुझसे अक्सर मौसी बात करती थी मुझे भी बहुत चिंता होने लगी दिन-रात सोचती थी काश सब ठीक हो जाये। एक रात 3 बजे सपना आय की कोई व्यक्ति मुझे कह रहा है आया कि उठो एक जरुरी कार्य करना है सुबह चार बजे ध्यान में बैठना है मैं घबरा कर उठ गई 4 बजे ध्यान में बैठ गयी मुझे उस सपने का कुछ समझ नही आया अगली दिन फिर ऐसा ही हुआ कई दिन लगातार मुझे ऐसा ही सपना आता और मैं जग जाती ध्यान करती। मौसी से बात हुई वो बहुत परेशान थी की डॉ ने जवाब दे दिया है कुछ नही हो सकता है। अचानक मेरे मुंह से निकला कि आप चिंता न करो सब ठीक होगा 43 दिन बाद से सब अच्छा होने लगेगा और रोज अपने आप मेरी 3 बजे नींद खुल जाती थी मैं सुबह चार बजे ध्यान में बैठने लगी मौसी का बेटा भी अचानक जग जाता था। उसको तीन से पांच नींद ही गायब हो गयी हम दोनों ये नही जानते थे कि हम दोनों जग जाते है एक ही समय। मुझे कुछ आभास नहीं था कि क्या हो रहा है जैसे कोई मुझसे करवा रहा अचानक मौसी का बेटा रात को गिर पड़ा सुबह ले कर हॉस्पिटल गयी जिस हॉस्पिटल में इमरजेंसी में भी पूरा दिन लग जाता था तुरंत डॉक्टर ने पेशेंट को देखा हालत नाजुक थी सारी रिपोर्ट मंगाई उसी दिन एम्स में सारे सीनियर डॉ की मीटिंग थी उसकी फाइल वहां गयी और इसके केस को सीनियर डाक्टर ने डिस्कस किया, तो पता चला दवाएं ही गलत डोज की चल रही थी।
              सारी दवाएं चेंज की, धीरे-धीरे मौसी का बेटा स्वस्थ होने लगा, जिसके लिए डॉ ने जवाब दे दिया था कि अब कुछ नही हो सकता ईश्वर की कृपा से अब वह पूरी तरह से स्वस्थ है ये सारा कार्य 43 दिन में ही हुआ। ईश्वर पर दृढ़ विश्वास में की गई दुआ से दवा भी काम करती है ईश्वर कोई न कोई माध्यम बनाता है आपके लिए हम समझ नही पाते है पर तब बहुत करुणा महसूस होती है जब उस कार्य हमारा चयन होता है करता वही है बस माध्यम बना लेता किसी न किसी को।



बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु करमु करई बिधि नाना।।


आप सभी के हृदय में ईश्वर का प्रेम प्रगाढ़ हो।
सभी को भोले प्रिय हो