सत योजन तेहि आनन कीन्हा

सत योजन तेहि आनन कीन्हा।



‘‘सत योजन तेहि आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवन सुत लीन्हा।।’’ 
उसी अत्यन्त लघु रूप में वह सुरसा जी के विशालकाय मुख में प्रवेश करके घूमते हुये बाहर निकल आये। सुरसा जी के लिये यहाँ सम्मान ही प्रदर्शित किया गया है श्री हनुमानजी द्वारा। ‘माँ’ कहा है सो गरिमा भी प्रदान की है और भगवान श्री हरि के वाहन और प्रिय गरुड़ जी की बहन है। अतः पवनसुत ने उनका कहा भी रख लिया और परीक्षा दे कर विनम्रता से बाहर भी आ गये - शीश नवा कर बिदा माँगते हैं पवन पुत्र जी ! -
‘‘बदन पैइठि पुनि बाहर आवा । 
माँगा बिदा ताहि सिरु नावा ।।’’
और परीक्षा परिणाम भी तुरन्त प्रदान करती है सुरसा माता -
‘‘मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा । 
बुधि बल मरमु तोर मैं पावा ।।’’
‘‘राम काजु सब करिहहु तुम्ह बल बुद्धिनिधान ।।’’
‘‘आसिष देइ गई सो हरषि चलेउ हनुमान ।।’’ 
(दो0 2)