सभी धर्मों में हैं हनुमानजी के भक्त

सभी धर्मों में हैं हनुमानजी के भक्त




             बजरंगबली की शरण में जो भी सच्चे मन से आया, कभी निराश नहीं हुआ। यही कारण है कि हिन्दुओं के अतिरिक्त अन्य धर्मों के अनुयायी भी बहुत बड़़ी संख्या में हनुमानजी को मानते हैं। बौद्ध, जैन और सिखों में तो हनुमानजी के भक्तों की कमी नहीं ही है, इस्लाम और ईसाई धर्म के मानने वालों में अनेक लोग पवनसुत की शरण में आकर अपना जीवन सफल बना चुके हैं। दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माने जाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जो ईसाई धर्म को मानते हैं, हनुमानजी के परमभक्त हैं। उल्लेखनीय है कि ओबामा के पिता मुसलमान और माँ ईसाई थीं। ओबामा जब राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे थे तो उन्हें एक हिन्दू पुजारी ने सलाह दी थी कि वे हनुमानजी की शरण में जाएं। उन्होंने ऐसा किया और वे भारी मतों से चुनाव जीत गये। उसके बाद उनकी हनुमानजी मे ऐसी आस्था बढ़ी कि वे हर समय हनुमानजी की छोटी सी प्रतिमा अपने साथ रखने लगे। हिंदू धर्म के प्रति भी ओबामा का लगाव बढ़ा है और उन्होंने अपनी सरकार में कई अहम पदों पर हिंदुओं को तैनात किया है।
             हनुमानजी के मुस्लिम भक्तों में अवध के नवाबों का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। यह ऐतिहासिक सत्य है कि सन् 1792 से 1802 के बीच अवध के तत्कालीन नवाब मुहम्मद अलीशाह की पत्नी रबिया के कई सालों तक कोई संतान नहीं हुई। उन्हांने अपनी बेगम का बहुत इलाज करवाया। यहाँ तक कि मुस्लिम पीर-फकीरों के चक्कर लगाए लेकिन उन्हें संतान नहीं हुई। तब उनके शुभचिंतकों ने सलाह दी कि यदि वह हनुमानबाड़ी (तत्कालीन इस्लामबाड़ी) के बाबा के यहाँ जाकर प्रार्थना करें तो उनकी मुराद पूरी हो सकती है। दरअसल हनुमानबाड़ी का भी एक इतिहास है। मान्यता के अनुसार जब भगवान राम ने सीता माता का त्याग किया तो लक्ष्मणजी और हनुमानजी उन्हें रथ पर बिठाकर कानपुर के निकट बिठूर के वाल्मीकि आश्रम की ओर चल दिये। आज के लखनऊ के अलीगंज तक आते-आते अंधेरा हो गया और रास्ते में ही विश्राम की आवश्यकता प्रतीत हुई। जिस स्थान पर वे रुके वहाँ एक बड़ा सा बाग था। यह स्थान आज अलीगंज में हीवेट पालीटेक्निक के पास है। यद्यपि लक्ष्मण जी चाहते थे कि कुछ दूर और चलकर गोमती नदी के उस पार अयोध्या की चौकी में विश्राम किया जाये। माता सीता ने लक्ष्मणजी के इस सुझाव को यह कहकर मना कर दिया था कि चूंकि उन्होंने राजमहल छोड़ दिया है। अतः वे किसी भी अन्य महल में न रुककर यहीं बाग में विश्राम करेंगी। इसके लक्ष्मणजी अयोध्या राज्य की चौकी में रात्रि विश्राम को चले गये। यह विश्राम स्थल बाद में लक्ष्मणलीला कहलाया। जिस स्थान पर आज मस्जिद है और इसे टीलेवाली मस्जिद कहते हैं। वहीं सीता जी ने बाग में विश्राम किया और हनुमानजी रातभर सीताजी की कुटिया के बाहर पहरा देते रहे। यह स्थान बाद में हनुमानबाड़ी कहलाया। इसी बाग में हनुमानजी का मंदिर स्थापित किया गया। 14वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी नामक मुस्लिम आक्रांता ने इस बाड़ी का नाम बदलकर इस्लामबाड़ी कर दिया।
             इसी इस्लामबाड़ी में नवाब मोहम्मद अली शाह अपनी बेगम के साथ हनुमानजी से प्रार्थना करने गये। हनुमानजी ने उनकी प्रार्थना सुन ली और उनकी पत्नी गर्भवती हो गयीं। गर्भावस्था में उनकी पत्नी को गर्भस्थशिशु ने स्वप्न में कहा कि हनुमानजी की मूर्ति इस्लामबाड़ी में गड़ी है, उसे निकलवाकर किसी मंदिर में स्थापित करवा दें। जब नवाब की बेगम ने यह स्वप्न अपने पति को बताया तो उन्होंने इस्लामबाड़ी को खोदवाया तो उसमें सचमुच हनुमानजी की मूर्ति मिली। इसी मूर्ति को अलीगंज में मंदिर बनवाकर नवाब मुहम्मद अली और उनकी बेगम ने स्थापित करवाया। आज यह अलीगंज का नया हनुमान मंदिर के रूप में जाना जाता है। इसी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एक बार नवाब वाजिद अली शाह की दादी आलिया बेगम बहुत बीमार पड़ीं। उन्होंने यहां आकर मंदिर में हनुमानजी से प्रार्थना की तो उनका असाध्य सा लगने वाला रोग ठीक हो गया। इसके फलस्वरूप उन्होंने इस मंदिर पर बहुत बड़ा उत्सत्व मनाया। तभी से इस मंदिर में मेले की परम्परा शुरू हुई जो आज तक जारी है। आलिया बेगम के नाम पर तत्कालीन गाँव का नाम अलीगंज रखा गया था जो आज तक चला आ रहा है।



नीलम दीक्षित
इन्दिरा नगर, लखनऊ