सबका भला करते मंगलमूर्ति हनुमान
मुझे 10 वर्ष की आयु से ही सन्त सानिध्य भगवत्कृपा से प्राप्त रहा यह मेरा परम् सौभाग्य था जीवन का। उसके फलस्वरूप शिव मंदिर की सेवा - मंगलवार को श्री हनुमान जी महाराज को सिंदूर अर्पण कर सुंदरकांड का पाठ नियम में आ गया जो अनवरत आज भी उन्ही की कृपा से हो जाता है। एक दृढ़ विस्वास सदा रहा कि मंगलमूर्ति हनुमानजी सबका मंगल करते है। मेरे माता-पिता सन्तान को लेकर बहुत चिंतातुर रहे, कारण ? सन्तान तो होती थी पर जीवन 2-3 वर्ष ही फिर मृत्यु हो जाती थी। श्री हनुमानजी की महिमा को सुन के उनके दरबार गये ठाकुर बाबा उनके सेवक थे सबकी अर्जी लगाते दरबार में हनुमन्त कृपा से सबके कष्ट निवारण होते मेरे माता-पिता के भी हुए बाबा ने आशीष प्रदान की मेरा जन्म हुआ दादी ले के गयी दरबार बाबा के चरणों में हंमे डाल दिया बाबा मुस्कराए बोले माई का नाम रखा बालक का ? बोली रवि शंकर बाबा अबकी बार हँसे बोले इसको तो ठाकुर जी से मांग के दिया तुझे यह प्रसाद आज से यह ठाकुर प्रसाद के नाम से ही जाना जायेगा।
श्री हनुमानजी का पावन चरित्र अद्भुत एवं अतुलनीय है, श्री हनुमानजी भगवान शिव के एकादश अवतार के रूप मे स्वयं महादेव। शिव के रूप में जगत का कल्याण तो करते ही है, वही हनुमानजी जीव को प्रभु चरणों तक पहुचाने का कार्य भी सम्पादित करते है। बिना हनुमन्त कृपा के जीव को राम कृपा प्राप्त नही होती यथा “राम दुवारे तुम रखवारे“ होत न आज्ञा बिनु पैसारे। आप जानते ही है।
शिव के रूप में भी भगवान राम की भक्ति प्रदान करने का अधिकार भी आपको ही है-
होइ अकाम जे नर मम सेहहि।
भगति मोरि तेहि शंकर देहहि।।
इस प्रकार जैसी मेरी मति एवं गति है मै यहां स्पष्ट कर दू कि न तो मै विद्वान् हूं न ही भक्त कहलाने योग्य जो कुछ भी संतो से सुना सत्संग से मिला वही प्रसाद है मेरा कुछ भी नही। मुझे लगता है जीवन में परोपकार की भावना रखे, सदा शुभ कार्य करे और उसे प्रभु चरणों में अर्पित कर कर्ता के अभिमान से मुक्त रहे, विनम्र रहे जब भी प्रभु कार्य माने शुभ कार्य करे,समाज के लिए देश के लिए हमेसा अपने को छोटा समझ के करे। श्री हनुमानजी लंका में प्रवेश करते है शत्रु के घर भी गये तो कितने छोटे बन के, और हम सब अपनों के यहां भी जाते है तो बड़े बन के अपने वैभव का सहारा ले के।
हमारा जय-पराजय की कितनी उम्र साहेब, सब प्रभु चरणों में अर्पित करें आप श्री हनुमानजी को देखे न, प्रभु श्रीराम ने पूछ दिया- हे हनुमन्त, “ केहि विधि दहेहु दुर्ग अति बंका“ आप सभी सुन्दर काण्ड के पाठी है जानते है भलीभांति कि पहले समुद्र लांघे, फिर बाग़ उजड़ा निशाचरों को मारा और फिर लंका दहन किया।
पर हनुमान जी का उत्तर सर्वथा भिन्न वो कहते है प्रभु “नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। समुद्र लांघ के लंका जलाई। फिर “निशचर बधि पुनि विपिन उजारा“ राक्षस मारे फिर बाग़ उजाड़ा। प्रभु मुस्कराए बोले हनुमन्त यह सही क्रम तो नही था, तो बोले सही क्या है आप ही जानो क्योकि प्रभु हमने कुछ नही किया तो क्रम हमें क्या पता “सो सब तव प्रताप रघुराई“
ऐसी निरभिमानिता के साथ कार्य करे। जब आप किसी देव् की पूजा करते हो, उसकी भक्ति करते हो तो उसके भक्त में यदि देवता के अनुरूप आचरण न हो तो कैसे पता लगेगा कि आप अमुक देवता के भक्त है। ऐसा शुभ आचरण करने से हंमे हनुमन्त कृपा निश्चित रूप से प्राप्त होगी ऐसा अटूट विश्वास हृदय में रखे। जय सियाराम
टी0पी0 शुक्ला
लखनऊ