मुक्के से नहीं मरा रावण इसलिए रो पड़े हनुमान

मुक्के से नहीं मरा रावण इसलिए रो पड़े हनुमान


 



           हनुमान जी अजर और अमर हैं। हनुमान ऐसे देवता हैं जिनको यह वरदान प्राप्त है कि जो भी भक्त हनुमान जी की शरण में आएगा उसका कलियुग में कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा। जिन भक्तों ने पूर्ण भाव एवं निष्ठा से हनुमान जी की भक्ति की है, उनके कष्टों को हनुमान जी ने शीघ्र ही दूर किया है। हनुमान भक्तों को जीवन में कभी भी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता उनके संकटों को हनुमान जी स्वयं हर लेते हैं। इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठको को हनुमानजी से संबंधित एक रोचक प्रसंग बताने जा रहे हैं। क्या आपको पता है कि आमतौर पर हनुमान जी युद्ध में गदा का प्रयोग नहीं करते थे, अपितु मुक्के का प्रयोग करते थे। रामचरितमानस में हनुमान जी को महावीर कहा गया है। शास्त्रों में वीर शब्द का उपयोग बहुतों के लिए किया गया है। जैसे भीम, भीष्म, मेघनाद, रावण, इत्यादि परंतु महावीर शब्द केवल हनुमान जी के लिए ही उपयुक्त होता है। रामचरितमानस में वीर उसे कहा गया है जो पांच लक्षण से परिपूर्ण हों। विद्यावीर, धर्मवीर, दानवीर, कर्मवीर और बलवीर। परंतु महावीर वह है जिसने पांच लक्षण से युक्त वीर को भी अपने वश में कर रखा हो। भगवान् श्रीराम में पांच लक्षण थे और हनुमान जी ने उन्हें भी अपने वश में कर रखा था। रामचरितमानस मानस की यह चौपाई इसे सिद्ध करती है।‘ सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने वस करि राखे रामू।’ रामचरितमानस मानस में भी ‘महाबीर विक्रम बजरंगी’ जैसा प्रयोग दृष्टव्य है।
           शास्त्रों की मानें तो इंद्र के एरावत हाथी में 10 हजार हाथियों के बराबर बल होता है। दिग्पाल में 10 हजार एरावत का बल होता है। इंद्र में 10 हजार दिग्पाल का बल होता है। परंतु शास्त्रों में हनुमान जी की सबसे छोटी उगली में 10हजार इंद्र का बल होता है। शास्त्रों में वर्णित इस प्रसंग के अनुसार रावण पुत्र मेघनाद हनुमानजी के मुक्के से बहुत डरता था। हनुमान जी को देखते ही मेघनाद भाग खड़ा होता था। जब रावण ने हनुमान के मुक्के की प्रशंसा सुनी तो उसने हनुमान जी का सामना कर हनुमानजी से कहा कि तुम्हारा मुक्का बड़ा ताकतवर है, आओ जरा मेरे ऊपर भी आजमाओ, मैं आपको एक मुक्का मारूंगा और आप मुझे मारना।
           फिर हनुमानजी ने कहा कि ठीक है! पहले आप मारो। रावण ने कहा कि मैं क्यों मारूँ ? पहले आप मारो। हनुमान बोले कि आप पहले मारो क्योंकि मेरा मुक्का खाने के बाद आप मारने के लायक ही नहीं रहोगे। रावण ने पहले हनुमान जी को मुक्का मारा। इस प्रकरण की पुष्टि यह चौपाई करती है।


‘देखि पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर।
आवत कपिहि हन्यो तेहिं मुष्टि प्रहार प्रघोर।’


           रावण के प्रभाव से हनुमान जी घुटने टेककर रह गए, पृथ्वी पर गिरे नहीं और फिर क्रोध से भरे हुए संभलकर उठे। रावण मोह का प्रतीक है और मोह का मुक्का इतना तगड़ा होता है कि अच्छे-अच्छे संत भी अपने घुटने टेक देते हैं। फिर हनुमानजी ने रावण को एक घूसा जड़ा। रावण कुछ इस तरह गिरा जैसे कि उस पर वज्र प्रहार हो गया हो। मूर्च्छा भंग होने पर रावण हनुमानजी के बल को सराहने लगा, गोस्वामी तुलसी दास जी कहते हैं कि अहंकारी रावण किसी की प्रशंसा नहीं करता पर उसने हनुमान जी के बल की प्रशंसा की। यह उसकी मजबूरी भी हो सकती है और वीरता के सम्मान का उसका अंतस भाव भी।
           प्रशंसा सुनकर हनुमान जो को प्रसन्न होना चाहिए पर वे तो रो रहे हैं स्वयं को धिक्कार रहे हैं। गोस्वामी जी के अनुसार हनुमानजी ने रोते हुए कहा कि मेरे पौरुष को धिक्कार है, धिक्कार है और मुझे भी धिक्कार है, जो हे देवद्रोही! तू अब भी जीता रह गया। अर्थात हनुमान जी का मुक्का खाने के बाद भी रामद्रोही रावण जीवित है। मोह की ताकत विचित्र है। मोह को यदि कोई मार सकता है तो केवल भगवान श्रीराम। उनके अलावा कोई नहीं मार सकता। इसकी पुष्टि यह चौपाई करती है।


‘मुरुछा गै बहोरि सो जागा।
कपि बल बिपुल सराहन लागा।
धिग धिग मम पौरुष धिग मोही।
जौं तैं जिअत रहेसि सुरद्रोही।’


जगदीश चन्द्र शुक्ल
लखनऊ