मदद करने को तुरन्त आ जाते पवनसुत


मदद करने को तुरन्त आ जाते पवनसुत


                  भगवान है या नहीं, ये बुद्धिजीवियों की बहस का विषय तो हो सकता है लेकिन उसके अस्तित्व को नकार पाना आसान नहीं क्योंकि जब सारे रास्ते बन्द होते हैं तो एक भगवान का ही सहारा समझ में आता है। ये अलग बात है कि कुछ राजनीतिक नेता अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए और उन्हें एक अलग दिशा देने के लिए ईश्वर के अस्तित्व को नकारते देखे जा सकते हैं लेकिन व्यक्तिगत जीवन वे इसका ठीक उल्टा करते हैं ये मैंने सुना नहीं बल्कि देखा भी है। वैसे मेरे जीवन में भगवान, ईश्वर, प्रभु या फिर बजरंगबली अथवा हनुमान जी के लिए सदैव सर्वोच्च स्थान रहा है और मैं वर्ष 1980 से बजरंगबली का उपासक हूं। पहले तो वर्ष 2012 तक मैं प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी का व्रत रखता था तथा भरसक प्रयास करता था कि हनुमान सेतु जाकर बजरंगबली को प्रसाद चढ़ाऊं और उनका आशीर्वाद लूं। एक बार की घटना तो मैं कतई भूल नहीं सकता- मैं काफी परेशान था, आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा था और कोई रास्ता सूझ भी नहीं रहा था। मंगलवार का दिन था अमूमन दोपहर बाद मैं मंदिर जाता था लेकिन उस दिन मैं सुबह आठ बजे ही मंदिर पहुंच गया। गुप्ता जी की दुकान से ग्यारह रूपये का प्रसाद लिया और मंदिर में जाकर बैठ गया, हनुमान चालीसा तथा सुन्दर कांड का पाठ करते-करते मैं बीच में अपनी परेशानी भी बजरंगबली को बता रहा था।
                  दरअसल मुझे तीस हजार रूपये की तत्काल जरूरत थी जो मुझे पांच बजे से पहले कहीं जमा करना था। पाठ पूरा करने के उपरान्त मैं दुःखी मन से बाहर निकला, चारों तरफ मुझे अंधेरा ही दिख रहा था। इसी बीच मेरा एक मित्र जो अब इस दुनिया में नहीं है, प्रसाद चढ़ाने मंदिर आ गया, जब वो प्रसाद चढ़ा चुका तो हम लोग नीचे आकर गुप्ता जी की दुकान पर बैठ गये।
                  मैंने अपने मित्र को बताया कि मुझे तीस हजार रूपये की तत्काल जरूरत है, ये बात जब मैं अपने मित्र से कह रहा था तो उनका दोस्त भी साथ खड़ा था जिसे मैं बिल्कुल नहीं जानता था, न कभी मिला था और न तबसे आज तक मिला हूं। उसने मेरी तरफ मुखातिब होकर कहा-क्या बात है? बहुत ज्यादा परेशान लग रहे हैं? मैंने अपनी व्यथा संकोच करते-करते उसे भी बताई। वो बोला मेरे साथ आइये और मुझे लेकर हजरतगंज स्थित सेन्ट्रल बैंक गया। तीस हजार रूपये निकाल कर दिये और कहा कि एक-दो महीने के बाद वापस इनको (मेरे मित्र) को दे दीजिएगा। मेरी आंखों में आंसू आ गये और मैं वापस फिर हनुमान सेतु गया बजरंगबली को धन्यवाद दिया क्योंकि जिसने मुझे रूपये दिये थे और कोई नहीं बल्कि स्वयं बजरंगबली थे। अगर कोई और होता तो कभी न कभी तो दोबारा मिलता लेकिन इतने वर्षां के बाद भी मैंने उसे कभी नहीं देखा और न ही वह कभी मुझसे मिलने आया जबकि मेरा घर, व्यवसाय सब कुछ वो जानता था।
                  ये है बजरंगबली की कृपा जिसने मेरी आस्था, विश्वास को और पुख्ता कर दिया। मैं आज भी जब किसी बड़ी परेशानी में होता हूं तो जाकर केवल निवेदन कर आता हूं और बजरंगबली चौबीस घंटे में मेरी मुराद पूरी कर देते हैं। वैसे अब तो आशीर्वाद के अलावा कुछ मांगता ही नहीं क्योंकि उनकी कृपा से ही आज मेरे पास वो सब कुछ है जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी।


डॉ. ओ.पी. मिश्रा
लखनऊ