जब हनुमान जी बचाई भाई की जान

जब हनुमान जी बचाई भाई की जान




           यह घटना वर्ष 1999 की हैं, मेरा रिश्ता देवकाली के निवाली ‘पाण्डेय’ जी के घर सुनिश्चित हुआ। इसके उपरान्त में मेरे घर खण्डौली में रामचरितमानस का पाठ अयोजित हुआ, मेरे बडे़ भाई जो इलाहाबाद बैंक में कार्यरत थे, और वो भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित होने खण्डौली आ रह थे, कि फजाबाद बाईपास के किनारे एक कार खड़ी जिसमें मेरे बड़ी भाई बैठे थे, उसे एक रोड़बेज बस ने टक्कर मार दी इस दुर्घटना से मेरे बडे़ भाई का ‘न्तपदंतल इसंककमत कट जाने के के कारण अत्यधिक रक्त प्रवाह हो चुका था वहाँ के स्थानीय लोगों ने उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया, परन्तु अत्यधिक रक्त प्रवाह होने के कारण लखनऊ रिफर कर दिया गया, इस सूचना से घर में शोक एवं चिन्ता का वातावरण उत्पन्न हो उठा, घर पर आयोजित अखण्ड रामायण का पाठ भी बाधित हो गया। परन्तु तभी मेरे बाबा ने पाठ को चलते रहने को कहा। हम लोग बड़े भाई को लेकर लखनऊ की ओर चल पडे़ कि तभी हमारी गाड़ी कुछ दूर जाकर खराब हो गई, मेरे भाई की हालत क्षण-प्रति क्षण खराब होती जा रही थी। मैं निराशा से टूट चुका था, कि मुझे अयोध्या में स्थित हनुमान जी का स्मरण हो आया जिनमें मेरी आस्था पूर्व से थी। तभी मैंने संकल्प भाव से हनुमंत लाल जी से कहा कि हे प्रभु अगर मेरे भाई के प्राणों को कुछ हो गया तो मैं आजीवन अयोध्या नहीं आऊॅंगा पर अगर मेरे भाई के प्राणों की रक्षा हो गई तो आजीवन अयोध्या आता रहूंगा। और अपका दर्शन बिना किसी लोभ और लालच से करता रहूँगा। कुछ क्षण बाद मैंने एक आश्चर्यजनक घटना घटती देखी। मेरे भाई का आपरेशन के.के अस्पताल लखनऊ में हुआ और वह खतरे से बाहर आ गए।
           इस घटना के बाद मेरे अन्दर और भी आस्था व श्रद्धा के भाव उत्पन्न हो गया। हे प्रभु जिस प्रकार आपने मेरे भाई के प्राणों की रक्षा की उसी प्रकार आप मेरे परिवार पे अपनी कृपा बनाये रखें आप की कृपा से मेरा परिवार सुखी व सकुशल जीवन यापन कर रहा है-हनुमंत लाल की मेरे जीवन की पहली सच्ची घटना आस्था के रूप में सत्य साबित हुई।


अरुण भान तिवारी
अमेठी