हनुमानजी का मान अभिमान सर्वश्रेष्ठ गुण

हनुमानजी का मान अभिमान सर्वश्रेष्ठ गुण 



 


ईर्ष्या तथा अभिमान ही अहंकार सृजित करके व्यक्ति का पतन कराते हैं उसे नीचे गिराते हैं किन्तु हनुमानजी को गिरा सके यह सम्भव ही कहाँ हैं। उन्हीं के लिये तो श्री राम ने नारद जी से कहा था स्मरण करें -
‘‘षटविकार - जित अनघ अकामा । 
अचल, अंकिचन सुचि सुखधामा ।।’’ 
सावधान - मानद - मदहीना 
(अरण्य काण्ड)
- तो विकार रहित हनुमत मूर्ति - के पास तो एक ही अभिमान हे - कौन सा ! वही जिसे सुतीक्ष्ण मुनि ने प्रभु श्री राम से वर माँगते हुये माँगा था वही श्री हनुमानजी का मान अभिमान सर्वश्रेष्ठ गुण 
‘‘अस ‘अभिमान’ जाइ जनि भोरे । 
मैं ‘‘सेवक’’ रघुपति पति मोरे ।।’’
अब ऐसा अभिमान तो बजरंग बली के ही पास है आप तो भगवान की ही छाया है और भगवान को गिरा सके ऐसा दुस्साहस भी सम्भव ही नहीं। तो हुआ क्या ?
‘‘ताहि मारि मारुत सुत वीरा।।’’ कीर्ति प्रशंसा की प्रवृत्ति ही जिनमें नहीं - वही तो हैं श्री हनुमान’’। तीन महिला पात्र सहयोगी रूप में तो तीन बाधा रूप में हनुमानजी । तीसरी बाधा रही है लंकिनी। - स्वयंप्रभा व पूर्व में प्रभु को सुग्रीवजी का मार्ग बताने वाली शबरीजी सहयोगी रही हैं।
लंका में प्रवेश करते हैं हनुमानजी ! अति लघु रूप धारण करके - किन्तु रावण की सुरक्षा व्यवस्था को भेद पाना इतना सरल कहाँ - लंका की प्रहरी लंकिनी की दृष्टि उनके छोटे से स्वरूप पर भी पड़ ही गयी। नर - बानर के प्रति तो उसे विशेष सतर्क रहने की रावणाज्ञा है उसने डाँटकर पूछा हनुमानजी से कि ये बानर ! तू कहाँ जा रहा है? अपशब्द बोलती कहती है कि - मेरा निरादर करके कहाँ घूसे जा रहे हो ?