गोण्डा की हनुमानगढ़ी

गोण्डा की हनुमानगढ़ी


जहाँ शिव के साथ किया था विश्राम




गोण्डा शहर में वैसे तो कुल मिलाकर तीन हनुमानगढ़ी है, परन्तु इसमें सर्वाधिक प्राचीन एवं पौराणिक महत्व की हनुमानगढ़ी मालवीयनगर मुहल्ला स्थित रामलीला मैदान के पूर्वी छोर पर स्थित है। बताया जाता है कि हनुमानलला यहाँ पर स्थित एक अत्यन्त ऊंचे टीले पर विराजमान थे। आस-पास में घना जंगल था। इसी वजह से इस इलाके का पुराना नाम बनकटवा पड़ा था। किंवदन्ती के अनुसार भगवान शिव दशरथ पुत्र रामचन्द्रजी के बाल्यकाल में उनका दर्शन करने के लिए मदारी के वेश में अयोध्या पधारे थे। उनके साथ बन्दर बनकर हनुमानजी भी थे। दशरथ के महल के सामने डमरू बजाकर शिवजी ने हनुमानजी को खूब नचाया तथा रामलला का मनोरंजन किया। वापस कैलाश पर्वत जाते समय गोण्डा के दुःखहरन नाथ मंदिर में भगवान शिव तथा बनकटवा के इसी टीले पर स्थित विशाल पीपल के वृक्ष पर हनुमानजी ने विश्राम किया था। तभी से इस हनुमानगढ़ी पर भक्तों का आना-जाना शुरू हो गया। आगे चलकर विक्रम संवत् 1857 मे धानेपुर की रानी जामवन्ती कंवरि ने यहाँ एक मंदिर का निर्माण करवाया। गोण्डा में सैनिक छावनी थी। यहाँ तैनात एक अंग्रेज ऑफिसर हनुमानजी का भक्त बन गया। वह प्रायः यहाँ दर्शन करने आता था। यहाँ जंगल-झाड़ होने से एक दिन उसे बिच्छू ने डंक मार दिया जिससे वह बेहोश हो गया। उसी अंग्रेज के कहने पर रानी ने न केवल मंदिर परिसर की सफाई कराई बल्कि इनका जीर्णोद्धार भी कराया। मंदिर में 1927 में निर्मित इंटे लगी है। इसका जीर्णोद्धार अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी की तर्ज पर कराया गयां इस मंदिर का स्वामित्व वर्तमान में धानेपुर राजघराने के उत्तराधिकारी दिनेश चन्द्र पाण्डेय के पास है। दिनेश चन्द्र समय-समय पर मंदिर परिसर का विकास व सौन्दर्यीकरण कराते रहते हैं। इसमें भक्तजनों द्वारा प्रदान किए गय दानराशि का भी उपयोग किया जाता है। मंदिर में पूजा-पाठ तथा आरती आदि की व्यवस्था मुख्य पुजारी पं. माता बदल मिश्र किया करते थे। 1995 में उनकी मृत्यु हो जाने पर उनके पुत्र पं. पारसनाथ मिश्र मुख्य पुजारी बने। वर्ष 2010 को जब उनकी भी मृत्यु हो गयी तो उनके ज्येष्ठ पुत्र पं. सच्चिदानन्द मिश्र मुख्य पुजारी बन गए। इनके तीन पुत्र मनीष, रतीश एवं अभिषेक मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए आने वाले भक्तों के लिए यथोचित प्रबन्ध में जुटे रहते है। इस कार्य में मुख्य पुजारी के चाचागण के पुत्र नरेन्द्र, राजेश, ज्ञानेन्द्र, राकेश व सुनील आदि भी समयानुसार सहयोग प्रदान करते हैं। यहाँ प्रत्येक मंगलवार को भारी भीड़ होती है। ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले बड़े मंगलों को तो पूरे दिन भक्तों तांता लगा रहता है। भीड़ को नियन्त्रित करने के लिए पुलिस का प्रबन्ध करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हनुमत जयन्ती के उपलक्ष्य में नवान्ह पाठ, प्रवचन, हवन पूजन व विशाल भण्डारे में भी सहयोग करते है।
देश के कोने-कोने से सन्त-महात्मा पधारते हैं। रामनवमीं, श्रीकृष्णजन्माष्टमी, होली, दीवाली पर भी इस हनुमानगढ़ी में विशेष आयोजन होते हैं। विगत वर्ष पुरातत्व विभाग के लोग यहाँ आये थे। उन्होंने हनुमान गढ़ी का गहन निरीक्षण किया। उक्त दल के सदस्यों ने न केवल इसके पौराणिक महत्व को स्वीकार किया बल्कि मदारी बनकर हनुमान को साथ लेकर शिव के अयोध्या जाने तथा वापसी में गोण्डा विश्राम की पुष्टि भी की।


डॉ. ओंकार पाठक
सिविल लाइन्स, गोण्डा