घोर निराशा में सदा याद आये केशरीनन्दन

घोर निराशा में सदा याद आये केशरीनन्दन



जब भी मेरे जीवन में कुछ ऐसे पल आए जहाँ ऐसा महसूस हुआ कि अब तो मेरे पास सिवाय आंसुओं के कुछ नहीं है। इस धरा के पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, परिवार-मित्र, गाँव की गलियाँ व शहर के चौराहे सब अजनबी लगने लगते हैं, जब सारी दुनिया सो रही होती और मैं बिस्तर पर नम आँखों से करवटें बदलता तो मेरा बिस्तर भी मुझसे रूठा नजर आता, यहाँ तक कि जो मेरी तकिया भी मुझे अजनबी जैसी लगने लगती। जब जीवन में भय, अंधेरा, निराशा सब घेर लेते, दिन और रात सुबह चिड़ियों का चहकना, दोपहर की धूप और शाम की छाया, सूरज की तपिश व चांद की शालीनता इन सबमें कुछ नजर नहीं आता। उस अवसाद भरी लम्हों में हनुमानजी महाराज ही दुःखहर्ता के रूप में दिखाई देते। ये पल मेरे जीवन में अनगिनत बार आए। यह दौर बचपन से अब तक इस तरह के दौर अनगिनत बार जीवन में आते और जाते रहे और जब यह दौर चरम पर होते तो रातभर नींद नहीं आती परन्तु निर्बलता और बेसहारा अकेलापन में मैं अक्सर बिस्तर में ही पड़ा रहता था और जिस दिन यह दौर पूरे 24 घंटे होते तो सुबह के 6 बजे से लेकर 8 बजे के बीच में अक्सर मुझे नींद आ जाती और मुझे हनुमानजी मन्दिर में मूर्ति रूप व पुजारी के साथ पश्चिममुखी मन्दिर के द्वार का दर्शन मिलता और उस दिन दर्शन के पश्चात भयभीत हो जाता और नींद तत्काल टूट जाती और सांसे तेज हो जाती। उस दिन दोपहर के पहले कोई न कोई मार्ग मुझे मिल जाता और फिर मैं उस मार्ग पर चल देता। आश्चर्य की बात यह है जिसके लिए मैं सोचता हूँ, चलता हूँ, करता हूँ, वह ऐसे वक्त पर उलाहना के सिवाय कुछ नहीं देता। मेरे ऐसे वक्त पर न तो कोई सांत्वना देता और न ही हालचाल पूछता। बस यही कहते कि वह परेशान हैं, जाओ मत नहीं तो गुस्सा हो जायेंगे। आपबीती एक घटना बताना चाहूँगा। पुश्तैनी जमीन के बंटवारे के विवाद में मेरे चाचा ने इतने कड़े तरीके से घेराबन्दी की जिसमें या तो मैं मारा जाता या जेल जाता। अप्रैल का महीना था गेहूं की कटाई हुई थी। इसी गेहूं की कटाई में मेरे चाचा ने कुछ असामाजिक तत्वों के साथ गाँव में ही घेर लिया और वहीं पुलिस बल बुला लिया। उस समय अपने मित्र के घर पर था। चारों तरफ से अपने को घिरा देखकर मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था। मेरा विवेक शून्य हो गया था। तभी सहसा मुझे ऐसा एहसास हुआ कि मुझे घर की छत पर चले जाना चाहिए और न जाने किसने मुझे इतनी ताकत और हिम्मत दे दी कि चारों तरफ से घिरे होने के बावजूद भी मैं छत पर जाने के लिए सीढ़ी चढ़ने लगा। और जैसे ही छत की सीढ़ी तक पहुँचा पुलिस टॉर्च जलाने लगी फिर भी मैं सीढ़ी चढ़ता गया जहाँ से सीढ़ी छत पर जाने के लिए चबूतरा बना था और इसी चबूतरे के कोने की दीवार के पास मैं खड़ा हो गया। मेरे चाचा के लोग चले गये तो मैं रात के 11 बजे से लेकर 1.30 बजे रात तक पेट के बल खेतों में खिसक-खिसक कर मुख्य मार्ग तक पहुँचा जो गाँव से 4 कि.मी. दूर था। उसके बाद मैं 11 कि.मी. पैदल चलकर अपने गाँव देवरिया पहुँचा। मेरा अपराध बस इतना था कि मेरी पुस्तैनी जमीन के आगे से देवरिया-आजमगढ़ मुख्य मार्ग पर स्थित है। मेरे चाचा का कहना था कि सड़क के सामने का हिस्सा वह लेंगे और मुझे पीछे का हिस्सा देंगे और मैं बस रास्ता मांग रहा था। गाड़ी आने-जाने के लिए और चाचा जी के न बोलने पर मैं अपने संबंधित तहसील में मुकदमा दायर कर दिया। हनुमानजी मुझ पर कृपा की बरसात करते रहते हैं और मुझे साहस, संबल देते रहे हैं और अपने मुश्किलों का सामना बड़े ही धैर्य से पार कर जाता हूँ। मैं प्रभु से यही करबद्ध प्रार्थना करता हूँ कि मेरे प्रभु यूँ ही मुझ पर कृपा बनाए रखें।


पारसनाथ
पटेल नगर, लखनऊ