बचपन से ही हनुमानजी की भक्ति

बचपन से ही हनुमानजी की भक्ति



मेरा जन्म सुल्तानपुर जिले के एक पिछड़े गाँव पिपरीसाईनाथपुर में हुआ। जन्म से कुछ ऐसे प्रारब्ध के संस्कार थे कि मुझे भी हनुमानजी की सेवा व भक्ति करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। लोग कहते हैं कि वृद्धावस्था के समय भक्ति की शुरूआत करनी चाहिए, परन्तु हमने जब प्रहलाद व धु्रव की कथाएं सुनी तब से मैंने इस विचारधारा का खण्डन किया। प्रभु की आराधना पूजा व भक्ति करने की कोई उम्र नहीं होती है। शायद ये हमारे पूर्व जन्म के संस्कार ही थे कि हनुमानजी ने मुझे व मेरे परिवार को अपनी पूजा अर्चना करने की प्रेरणा व अवसर प्रदान किया। कई जन्मों का पुण्य जब उदय होता है तो ऐसे अवसर प्रदान होते हैं। मुझे हनुमानजी की एक चमत्कारिक घटना याद आ रही है। मेरे यहाँ हनुमानजी का भव्य मन्दिर है। जिसमें हनुमानजी एवं भगवान श्री रामदरबार, राधाकृष्ण, माँ दुर्गा एवं भोले बाबा की लिंग रूप में स्थापना हुई है। जिसकी स्थापना दिवस का कार्यक्रम प्रतिवर्ष बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।


एक बार वार्षिकोत्सव का कार्यक्रम चल रहा था। तभी अचानक मौसम खराब होना शुरू हो गया टेन्ट लगे थे एवं भोजन प्रसाद की व्यवस्था थी। तभी मौसम खराब हो गया और आकाश में काले-काले बादल उमड़ने लग। आंधी जैसा माहौल उत्पन्न हो गया। सारे लोग भयभीत हो गये कि अब तो सारा कार्यक्रम चौपट हो जायेगा। मंदिर प्रांगण में उपस्थित सभी लोगों को अब एक हनुमानजी का सहारा नजर आया। संकट की घड़ी में संकटमोचन ही इस आने वाली आँधी तूफान से रक्षा कर सकते हैं।



‘‘कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसो नहीं जात हैं टारो ।
बेगि हरो, हनुमान महाप्रभु
जो कछु संकट होय हमारो ।।



उसी समय भयानक धूल भरी आँधी व बारिश होना शुरू हो गयी। परन्तु हनुमानजी की कृपा देखिये, सामने 500 मीटर मात्र दूरी पर आँधी चल रही थी, पेड़ की डाली टूटकर गिर रही थी और बारिश हो रही थी, परन्तु जहां हनुमानजी का कार्यक्रम चल रहा था, वहाँ उस बारिश व तूफान का कोई असर नहीं पड़ा। ये है हनुमान जी की महिमा और उन पर विश्वास एवं समर्पण का फल। मैं जब भी किसी परेशानी में पड़ती हूँ और हताश हो जाती हूं। तब सिर्फ हनुमानजी का ध्यान करती हूँ कि हे हनुमानजी मुझे अवसाद ग्रस्त जीवन से बाहर निकालो। कभी-कभी तो मैं अकेले में रो लेती हूँ जब-जब ऐसी हताशा की स्थिति होती है तब हनुमानजी मुझे साहस प्रदान करते हैं और मैं ऐसी स्थिति से बाहर निकल पाती हूं। सिर्फ इनकी कृपा से।



‘हरि व्यापक सर्वत्र समाना ।
प्रेम ते प्रगट होहिं मैं जाना ।।



भक्ति करना आसान नहीं होता। माता शबरी को देखकर लोग हँसते थे इनके घर भगवान आएंगे परन्तु भगवान आये उनकी श्रद्धा को देखकर। मीरा


जी नाच उठी जब उन्हें ज्ञान मिला ।
पायो जी मैंने राम-रतन धन पायो ।।



जहर का प्याला पी लिया मीरा ने और कोई असर नहीं उनके शरीर पर, ये ताकत होती है विश्वास की। मैं सदा हनुमानजी से प्रार्थना करती हूँ कि हे प्रभु सदा अपने चरणों की भक्ति देना। आपकी पूजा अर्चना एवं सेवा में मेरा जीवन बीत जाये और मैं भी अपना मानव जीवन सफल कर लूँ।


रिचा द्विवेदी
हनुमतपुरम, सुल्तानपुर