अति लघु रूप धरेऊ हनुमाना
चोर ही नहीं आहार कहती है लंकिनी किन्तु मुष्ठिका प्रहार होते ही ‘ज्ञानोदय’ हो गया। तो रावण के प्रति राग वृत्ति की कुबुद्धि को सन्मार्ग ही दिखा दिया श्री हनुमानजी ने और उसे ब्रह्मा जी के वरदान का स्मरण हो आया।
अब आप सोचें कि बजरंगबली जी ने तो लंकिनी से एक भी शब्द कहा ही नहीं कोई विचार उपदेश कथा संवाद नहीं हुआ और कह रही है लंकिनी कि ‘‘जो सुख लव सतसंग।।’’
श्री हनुमानजी के लिये तुलसीजी ने लिखा है कि तो प्रबल वैराग्य का प्रहार ज्ञान चक्षु खोल गया लंकिनी के, तो श्रीराम के भगवदसत्ता का शर तो अमोघ ही है - तो अचूक शर की भाँति हनुमानजी भी मार्ग में आते जा रहे प्रत्येक बाधक या विघ्नकर्ता को अमोघ फल प्रदान करते चले हैं और अब बाधक के स्थान पर उन्हें शीघ्र ही मिलना है ‘साधक’ से - विभीषणजी से - तो आगे वही पहंँचते है श्री हनुमानजी के ही साथ साथ - - लंका की प्रहरी लंकिनी स्वयं ही बता चुकी है कि
‘‘प्रबिसि नगर कीजै सब काजा ।
ह्नदय राखि कौसलपुर राजा ।।’’
और अब श्री हनुमानजी लंका में विधिपूर्वक प्रवेश कर रहे हैं - क्योंकि ‘श्रीराम’ के हृदय में वास मात्र से अग्नि की दहकता भी शीतल पड़ जाती है व विशाल सागर भी गौ के खुर से बना जलकुण्ड सरीखा बन जाता है ऐसा स्वयं श्रीकागभशुंडिजी - गरुडजी से कहते हैं - -
‘‘गरल सुधा रिपु करई मिताई ।
गोपद सिन्धु अनल सितलाई ।।’’
‘‘गरुड़ सुमेरु रेनु सम ताही ।
राम कृपा करि चितवा जाही ।।’’
तो पुनः अत्यन्त लघु रूप बनाकर ‘भगवान’ का स्मरण करते श्री हनुमानजी महाराज लंका की नगरी में प्रवेश करते हैं - - - सीता जी की खोज में आये हैं श्री रामदूत जी - - -
‘‘अति लघु रूप धरेऊ हनुमाना ।
पैठा नगर सुमिरि भगवाना।।’
‘‘मंन्दिर मन्दिर प्रति कर सोधा ।
देखे जहँ तहँ अगनित जोधा ।।’’
‘‘बाधक’’ से मिलने के बाद ‘‘साधक’’ से मिलने वाले है श्री हनुमानजी।