अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता हनुमानजी

अष्टसिद्धि नवनिधि के दाता हनुमानजी




         वायुपुत्र श्रीहनुमानजी सतत् आराध्य हैं, कलियुग में निष्ठावान भद्रों पर शीघ्र प्रसन्न होते हैं। श्रीहनुमानजी शिवजी के सुवन, वायु द्वारा प्रवाहित, केशरी की पत्नी अंजनी द्वारा सुवनमुक्त पानी पी जाने से अंजनी माँ से श्री हनुमानजी का प्राकट्य हुआ। केशरीपुत्र होने के कारण (आत्मा वो जायतेपुत्रः) बाल्यावस्था से ही बहुत नटखट थें। उड़नशील पंख होने के कारण सर्वत्र गमनशील थे। इसीलिए देवलोक, गन्दर्व, किन्नर आदि लोकों में बालकों के साथ क्रीड़ा करने व बच्चों को प्रताड़ित करने चले आते थे, प्रताड़ित बच्चों के अभिभावक केशरी और अंजनी से शिकायत करते थे, अंजनी और केशरी ने अपने पुत्र हनुमानजी को बहुत समझाया और अन्य लोकां में जाने से मना कर दिया। हनुमानजी ने विचार किया कि जब हमें कहीं जाना नहीं है तब ये पंख बेकार हैं, अपने हाथों से पंखों को काट दिया। 16 वर्ष की आयु में माता से आज्ञा लेकर मन्दराचल पर्वत पर जाकर घोर तपस्या की। ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर आठ सिद्धियों को प्रदान किया। अणिमा, लघिमा, महिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राभाम्य, वशित्व, ईशत्व ये क्रमशः आठ सिद्धियाँ हैं।
अणिमा- अत्यंत छोटा स्वरूप बना लेना
मशक समानरूप कपि धरी ।
लंकहि चलेउ सुमिर नर हरी ।।
लघिमा- शरीर बहुत हल्का कर लेना (आकाशीय मार्ग से संजीवनी बूटी ला करके लक्ष्मण के प्राण बचाना)
महिमा- शरीर को बढ़ाने की कला में प्रवीण हो जाना
योजन भर तेहि बदन पसारा ।
कपितनु कीन्ह दुगुन विस्तारा ।।
गरिमा- शरीर भारी कर लेना (मेघनाद समकोटि सत योद्धा रहे उठाय ।
प्राप्ति- संकल्पमात्र से इच्छानुसार वस्तु को प्राप्त कर लेना (सीता खोज में क्षुधातुर होने पर तृप्त हो जाना)
प्राभाम्य- अनायास अन्यान्य शरीर धारण करने की क्षमता हो जाना (विप्र रूपधरि पवन सुत आई गयो जिमि पोत)
वशित्व- इन्द्रियों को वश में कर लेना (हनुमानजी ने कभी माता सीता के मुरवार बिन्द का अवलोकन नहीं किया। सदैव चरणों का ही ध्यान किया)
ईशत्व- भूत और भौतिक पदाथों पर अधिकार हो जाना (भूत परेत निकट नहिं आंवे ।)
उपरोक्त सिद्धियाँ श्री हनुमानजी को प्राप्त तो हो गयी थीं, परन्तु भक्तों को देने की कला माता सीता जी के प्रसन्न होने से वरदान देने पर ही प्राप्त हुई।
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ।
अस वर दीन्ह जानकी माता ।।
सीताजी के द्वारा आशीष देने के बाद हनुमानजी सम्पूर्ण बाधाओं दूर करके सुख शांति के दायक वन गये। कलियुग में जो भक्त श्री हनुमानजी आराधना करके निम्न 12 नामों का जप करता है उसकी इष्ट सिद्धि प्राप्ति होती है।
श्री हनुमानजी के 12 नाम
1. ऊँ हनुमते नमः 2. अंजनी सून के नमः 3. वायु प्रकाय नमः 4. महावलाय नमः 5. रामेष्टाय नमः 6. फाल्गुन सरवाय नमः 7. पिंगाक्षाम नमः 8. अमित विक्रमाम नमः 9. उदाधिक्रमणाम नमः 10. सीताशोक विनासाम नमः 11. लक्ष्मण प्राणदामे नमः 12. दसग्रीव दर्प हन्भे नमः।


रामनरेश मिश्र ‘शास्त्रीजी’
मोहम्मदपुर खाला, बाराबंकी