वन्दना


वन्दना


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कैलाश सी है दिव्यता, बैकुंठ का संगीत है, 
तुझमें है प्रेम सुधा, बस तुझमें ही प्रीत है।।


आकाश सा विशाल मन, धरा सी मातृ प्रीत है 
प्रवाहिनी मैं बूँद बूँद, जो बह रहा वो नीर है 


कल्पना तू मीत की, जो संग है तो गीत है
है प्रेम का प्रकाश तू, अनन्त तेरी रीत है 


हरीतिमा बसंत की, गुलाब की सुगंध है 
तू चंद्र की है चंद्रिका, विभोर में असीम है


कैलाश सी है दिव्यता, बैकुंठ का संगीत है, 
तुझमें है प्रेम सुधा बस, तुझमें ही प्रीत है।


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मीनाक्षी, जयपुर