श्रीहनुमानगढी : आध्यात्मिक पावन स्थल


श्रीहनुमानगढी : आध्यात्मिक पावन स्थल


बाबा नीब करौरी महाराज के प्रथम दर्शन मुझे वर्ष 1966 में श्री हैड़ाखान आश्रम में हुए। तब मैं 11 वर्ष का था। श्री महाराजजी ने अपनी कृपा दृष्टि के पावन आशीर्वाद स्वरूप बंधन से पूरे परिवार को इस तरह बांध रखा है; कि जीवन की प्रत्येक घटना उन्ही के आशीर्वाद का चमत्कार प्रतीत होती है।
 सन् 1995 की जुलाई में मेरा स्थानांन्तरण कसियालेख मुक्तेश्वर में हो गया था। तब मैंने महाराजजी एवं श्री सिद्धि माँ से प्रार्थना की कि मेरा स्थानांतरण पुनः नैनीताल ही हो जाये। प्रार्थना की करुण पुकार थी; महाराजजी ने चमत्कार किया और पुनः मेरा स्थानांतरण नैनीताल हो गया। तथा पोस्टिंग उच्चन्यायालय नैनीताल में हो गई। नैनीताल आकर श्री हनुमानगढ़ी के प्रति श्रद्धा एवं विश्वास ने जैसे मेरे जीवन को प्रतिपल नवरूपों में अनुदेशित किया है। मैं सपत्नीक रोज सुबह चार बजे हनुमानगढी़ जाते है। कई बार रास्ते में शेर भी मिले, पर महाराजजी की कृपा से हम प्रभु का स्मरण करते हुए सदैव ही अपने अपने मार्ग पर चलते रहे। कभी कोई भय नहीं लगा। कैसा भी मौसम हो, कितनी भी विपरीत परिस्थिति हो हम पति पत्नी हनुमानगढ़ी अवश्य आते है; नहीं तो मन में असंतोष सा व्याप्त रहता है।



 मुझे अक्सर सपनों में बन्दर दिखाई देते थे। मैंने महाराजजी से प्रार्थना कर इसका कारण जानना चाहा। प्रभु कृपा से महाराजजी ने स्वप्न में साक्षात दर्शन दिये और बंदरों का दिखना बंद हो गया।
 एक दिन स्वप्न में ही देखा कि महाराजजी लडडू का प्रसाद बांट रहे है; मैंने भी उनसे एक लडडू मांगा। उन्होंने मुस्कुराकर हनुमान जी की प्रतिमा की ओर इशारा करके कहा; 'उनसे लडडू मांगो'। मैंने ऊपर की तरफ देखा तो मंदिर की छत पर विशालकाय हनुमान जी बैठे थे। फिर मेरे लडडू मांगने पर उन्होंने एक लडडू दे दिया। तभी मैंने देखा सामने की दीवार पर भी बहुत से छोटे- छोटे बंदर बैठे हैं, मैंने सभी को थोड़ा थोड़ा प्रसाद दे दिया।
 एक बार हनुमानगढ़ी मंदिर में विशाल भंडारे का आयोजन किया जा रहा था। गुरू पूर्णिमा का पावन पर्व था। सभी श्रृद्धा से उत्साहित थे। मैं भंडारे के लिए आलू काट रहा था। तभी सामने बबलू को देखकर मैंने कहा कि कद्दू ले आता तो अच्छा था। फिर मैं इसी आशय से उठकर, बाहर की तरफ आया कि प्रसाद में आलू के साथ कद्दू को भी मिलाकर बना सकूं। तभी मैं यह चमत्कार देखकर अचंभित रह गया कि मंदिर के गेट के पास कोई एक बोरी कद्दू रख गया था। तब मैंने आलू कद्दू की स्वादिष्ट सब्जी बनाई और भक्तजन भी तृप्त हो गये।
 इस तरह श्री हनुमानगढ़ी नीबकरौरी महाराजजी एवं श्री सिद्धि मां के साथ व्यक्तिगत रूप से हमारे जो अनुभव है, उनको शब्दों में व्यक्त करना सूर्य को दीया दिखाने जैसा है। जितनी आध्यात्मिकता के साथ हमने प्रभु के आशीर्वाद की तृप्ति को महसूस किया है वह शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। श्री हनुमानगढ़ी जैसे पावन आध्यात्मिक स्थली से प्रभु का आशीर्वाद सभी पर बना रहे, ऐसी हमारी आकांक्षा है। 


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श्री प्रेम सिंह संभल


नैनीताल