बाबाजी ने खुद ले ली मेरी बीमारी


बाबाजी ने खुद ले ली मेरी बीमारी


        बात वर्ष 1994 की है। जनवरी में मुझे हेपेटाइटिस बी व लीवर सिरोसिस हो गया था। पहले तो यह समझते रहे कि पीलिया हो गया है, झाडफूक से ठीक हो जायेगा जब डाक्टर को दिखाया तो जांच करने पर पता चला कि मुझे अस्ट्रेलियन ऐटी जेन्ट जी हेपेटाइटिस बी का भंयकर रूप है जिसमें मरीज की जान बचा पाना बहुत ही मुश्किल होता है। इस बीमारी से ग्रसित अधिकतर मरीज भगवान को प्यारे हो जाते हैं। पारिवारिक डॉक्टर अजीत कुमार माथुर ने जब मुझे देखा तो सीधा अस्पताल में भर्ती करा दिया पर रहना सम्भव नहीं था क्योंकि यह संक्रामक रोग था किसी और को न लग जाये तो आगरा के प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ हर दो घण्टे बाद ब्लड टेस्ट होता था, मेरा बिर्लूविन एस.सीपी.टी. इत्यादि इतना बढ़ता जा रहा था कि डॉक्टर परेशान थे। कोई दवा भी काम नहीं कर पा रही थी। मेरे पास कोई आ जा नहीं सकता था। पत्नी को तीन इन्जेक्शन लगे कि इन्हें कोई इन्फेक्शन न हो जाए। उस समय बड़े पुत्र की आयु 11 वर्ष और छोटे पुत्र की चार वर्ष थी। बच्चे भी मिल नहीं सकते थे। हर दो घण्टे बाद ब्लड रिपोर्ट देखकर डॉक्टर भी डर गये कि यह बीमारी तो और बढ़ती जा रही है। मुझे ग्लूकोज की बोतल चढ़ाई जाती थी जो सुबह छह बजे लग जाती और रात आठ बजे तक केवल एक ही बोतल चढ़ती थी। बोतल निकलते ही उल्टी शुरू हो जाती थी। डॉक्टर ने सभी रिश्तेदारों को खबर करने की बात कह दी थी। एक दिन अचानक मुझे फाइल देखने को मौका मिल गया तो स्थिति स्पष्ट हो गयी कि अब बचने की कोई उम्मीद नहीं है। मेरा खाना, नाश्ता पानी सब डॉक्टर के घर से टेस्ट होकर आता था कि क्या खाना है। कोई गलत असर न हो जाए। जो भी देखने आता था उसे अन्दर जाने की इजाज़त नहीं थी केवल खास लोग ही कुछ क्षण के लिए आ सकते थे वरना बाहर से ही देखकर हालचाल पूछकर चले जाओ। मैं हर समय महाराज जी का ही ध्यान करता रहता था कि महाराज जी मेरी रक्षा करें। महाराज जी एवं हनुमान जी के नाम एक पत्र लिखा कि बाबा आपने कहा है कि जिसे भी जो परेशानी हो वह हनुमान सेतु लखनऊ वाले हनुमान जी को पत्र लिख दे कि उसे क्या कष्ट है हनुमान जी उसके कष्टों का निवारण कर देते हैं। मैंने भी एक पत्र लिख कर प्रार्थना की कि हनुमान जी महाराजजी कच्ची गृहस्थी है छोटे-छोटे बच्चे हैं। अगर मुझे कुछ हो गया तो घर बिगड़ जायेगा। हे महाराज जी मेरी रक्षा करें। यह पत्र मैंने अपने साले के हाथ से लखनऊ हनुमान सेतु मन्दिर भेजा। उधर मैंने पत्नी को घर भेजकर बाबा नीब करौरी महाराज की तस्वीर मंगाकर अपनी छाती पर रख ली, कि गुरूवर रक्षा करें। मुझे नहीं मालूम मुझे नया जीवन दो। महाराज जी की तस्वीर रात दिन मेरी छाती पर ही रखी रहती थी क्योंकि मुझे हिलना डुलना भी मना था। न उठ सकता था न करवट ले सकता था। 



        इधर चिट्ठी हनुमान जी और गुरूदेव के पास पहुंची और तस्वीर छाती पर रात दिन रहना गुरूदेव का चमत्कार शुरू हो गया। तस्वीर रखने के बाद मेरा ब्लड टेस्ट हुआ तो उसकी रिपोर्ट अच्छी आयी। जब डॉक्टर ने देखा तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि जिस व्यक्ति की रिपोर्ट इतनी खराब आ रही थी एकदम ऐसे कैसे हो सकती है। रिपोर्ट गलत है दुबारा टेस्ट कराओ। फिर ब्लड टेस्ट होने के लिए गया तो रिपोर्ट और भी अच्छी आ गयी। जो रिपोर्ट खतरनाक आ रही थी एकदम कोई खतरनाक बीमारी की रिपोर्ट अचानक इतनी अच्छी हो ही नहीं सकती है। अब आगरा की मशहूर पैथालॉजी लैब डॉक्टर अनिल अग्रवाल, डॉ लहरी की लैब में ब्लड सैम्पल टेस्ट होने के लिए भेजा गया। जब इन लैब से रिपोर्ट आयी तो और भी अच्छी थी। डॉक्टर अजित कुमार रिपोर्ट देखकर हैरान कि यह तो कोई चमत्कार है। आप किस गुरू को मानते हैं उन्हीं का प्रताप है कि आप दिन रात दुगनी चौगुनी प्रगति कर रहे हैं। दवाई भी इतनी महंगी थी कि कोई सोच भी नहीं सकता एक कैप्सूल तो आगरा जैसे शहर में मिलता तक नहीं था, उसे दिल्ली से मंगाना पढ़ता था। मैंने कुछ रूपये मामा के लड़के जो मेरे अस्पताल के पास ही रहते थे के आप रखवा दिये कि हम यहां कहां रखेंगे। जब दवाई लेनी होगी तब उनसे ले लेंगे। मामा के लड़के दोनों टाइम मुझे देखने आते थे। कचहरी जाने से पहले घर जाने से पहले। वह दीवानी के जाने माने एडवोकेट हैं और आगरा रत्न से सम्मानित हैं जिन्हें हर आदमी जानता है। हृदय शंकर माथुर जिन्हें हम लोग प्यार से चिमी दादा कहते हैं, रोज बदलने वाली दवा रखकर कचहरी जाते थे। 
        15 दिन अस्पताल में रहने पर उस समय में लगभग 40 हजार रूपया खर्च हुआ था। जब घर आया तो चिमीदादा ने एक लिफाफा दिया कि यह तेरे पैसे बचे हैं। मैंने देखा तो दंग रह गया। सारा पैसा ज्यों का त्यों रखा था, दवाइयां इतनी महंगी आती थी कि कोई सोच भी नहीं सकता। यह बात जब मैंने भाई से कहीं तो बोले तुझे ध्यान नहीं है कि तूने कितना पैसा दिया था। मैंने तो इसी में से खर्च किया है। मैंने उन्हें पैसे लौटाने की भी बहुत कोशिश की परन्तु उन्होंने एक पैसा भी नहीं लिया। यह सब खेल मेरे गुरूदेव ही खेल रहे थे कि बच्चे के पास इतना रूपया नहीं है सारा खर्च कर देगा तो घर कैसे चलेगा। महाराज जी ने भक्तों के माध्यम से मेरी आर्थिक रूप से भी मदद करायी और मैं अच्छा होकर बच्चों के पास आ गया।
        यह बात काफी दिनों बाद पता चली कि महाराज जी अपने भक्त के कष्ट को अपने ऊपर ले लेते हैं और उन्हें ठीक कर देते हैं, यही मेरे साथ भी हुआ कि इतनी भयंकर बीमारी जिससे आज भी कोई नहीं बच पाता है मैं सही सलामत गृहस्थी का पालन पोषण कर रहा हूॅं। यह सब बातें मैंने वृन्दावन भण्डारे में सिद्धि मां व जीवन्ती मां को भी बतायी थी। वह भी सुनकर बोली महाराज जी का भजन और करो कृपा बनी रहेगी। ऐसे गुरूवर को मैं तथा मेरा पूरा परिवार शत शत नमन करता है और यही प्रार्थना करते हैं कि ऐसी कृपा सदैव बनी रहे। 


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विनय माथुर (ध्रुव)
जयपुर (राजस्थान) 
मो0-7230076539