वन्दना
गुरु ग्रंथन का सार है, गुरु है ईश्वर नाम ।
गुरु अध्यात्म प्रदीप है, गुरु हैं चारों धाम ।।
गुरु अनंत तक जानिए, गुरु का ओर न छोर।
गुरु प्रकाश का पुंज है, निशा बाद ज्यों भोर ।।
गीली मिट्टी अनगढ़ी, मुझको सद्गुरु जान ।
अंतर्मन निर्मल करो, तुम समर्थ बलवान ।।
मन अधीर अतिसय व्यथित, अंधकार अति घोर ।
कृपा ज्योति प्रज्ज्वल करो, विनय करूँ कर जोर ।।
बिनु गुरु ज्ञान न उपजै, कहे वेद विज्ञान ।
महिमा अमित अपार गुरु, बरनत संत सुजान ।।
जिन्हके घट अन्तर्हृदय, निज गुरु प्रीति अपार ।
तिन्हको कछु दुर्लभ नहीं, विगत सकल संसार ।।
गुरु बिनु संकट ना कटे, गुरु बिनु दिशा अजान ।
गुरु बिनु दुर्लभ चारि फल, गुरु बिनु मिले न मान।।
जिस पर हो गुरु की कृपा,सब हो पूरण काम ।
गुरु की सेवा से मिले, पारब्रह्म सुखधाम।।
गुरुवर को हिय राखिए, गुरु संकट की ढाल ।
हर अवगुण, सद्गुण करें, मिटे घोर भ्रमजाल ।।
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सूर्य प्रकाश दूबे
दिल्ली