महिमा गुरु की

 


चेतन को चरित्रार्थ, व्यक्त कराने वाले, अव्यक्त, गुरू के श्री चरणों मेः-




महिमा गुरु की कहाँ लौ, करहुं नाथ विस्तार
सद्गुरु नाम जहाज को, चढ़े सो उतरे पार



सद्गुरु नाम मोक्ष आधारा। संगति सुमति शांति को द्वारा।।
तरहिं मूढ़ अज्ञानी पापी। सद्गुरु प्रभु के वाकी टाकी।।
सद्गुरु चाक स्लेट यह काया। डस्टर जैसे छुडावैं माया।।
सद्गुरु पिता मातु अरु भ्राता। सद्गुरु सखा सुमंगल दाता।।
सद्गुरु सदा शिष्य के शिक्षक। ज्ञान बुद्धि विद्या के रक्षक।।
केहि विधि करौं तुम्हार प्रशंसा। हम हैं काग नाथ तुम हंसा।।
चरण कमल जेहि जेहि सिर धारा। उपजा ज्ञान भयउ उजियारा।।
अरथ बखान कहाँ लौ गाई। तुम जानौ प्रभु औ प्रभुताई।।
गुरु प्रसाद पावहिं जे प्रानी। भ्रमि भ्रमि फिरैं न जगत भुलानी।।
सद्गुरु ब्रह्म ज्ञान की धारा। जेहि पावा परलोक सुधारा।।
सद्गुरु कथा तरहिं भव प्रानी। सुनहु सकल श्रवनामृत जानी।।



गुरू बिन मिलहि न ज्ञान, ज्ञान बिना नहि हरि भगति
भगति बिना नहि मोक्ष, समुझि लेहु सब चतुर नर


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अशोक अवस्थी 
आलमबाग, लखनऊ। मो0. 9838727587