कैंची धाम पहुंची तो साकार हुआ सपना
गुरुओं के आशीर्वाद के बगैर कुछ भी संभव नहीं है और यह मैंने अपने जीवन में देखा है। आज से करीब चार साल पहले जब मैंने पहली बार किशन दास के भजन यूट्यूब पर सुने तो मुझे इस बात का अहसास नहीं था कि मेरे जीवन में एक नया अध्याय शुरू होने वाला है, मैंने जब पहली बार किशन दास के भजन सुने तो वह अंदर तक मन को छू गए है और मेरी इच्छा हुई कि मैं उनके बारे में जानूं और उनके बारे में पता करूं। उनके बारे में पता करते-करते मैं बाबा की बेबसाइट पर पहुंच गई। बाबा के बारे में पढ़ा और पढ़कर मंत्रमुग्ध हो गई उसके बाद मन में इच्छा रही कि जब भी मौका मिलेगा मैं बाबा के दर्शन के लिए कैंची धाम जरूर जाऊंगी, मैं बाबा से हमेशा प्रार्थना करती रही की वह हमें अपने दर्शन के लिए कैची धाम बुलायें।
उसके दो साल बाद में भारत हमेशा के लिए वापस आ गई तो मन में इच्छा हुई कि क्यों ना अब बाबा के दर्शन के लिए जाऊं पर कुछ प्रोग्राम नहीं बन पा रहा था। यह बात सन 2017 के अप्रैल की है। अप्रैल में नवरात्रि रामनवमी के बाद मेरे पति ने नौकुचियाताल जाने का प्रोग्राम रखा। उन्होंने बताया कि वहाँ से हम कैंची धाम भी दर्शन के लिए जा सकते है, जैसी मेरी बाबा ने मुराद सुन ली हो, मैंने हर्ष पूर्वक स्वीकार कर लिया और घर से नौकुचियाताल की ओर रवाना हुए वहां जाकर हमें सबसे पहले अत्यंत खुशी हुई जब हमने नौकुचियाताल में हनुमान जी का इतना बड़ा मंदिर देखा और उससे भी ज्यादा खुशी हुई जब उसके अंदर जाकर हमें पता चला कि यह भी नीब करोरी बाबा की ही शिष्या मौनी माँ जी का मंदिर है और यहां पर बाबा जी की भी मूर्ति लगी हुई है क्योंकि मैं दिल्ली से वहां पर उन्हीं के दर्शन करने के लिए गई थी और रास्ते में सोच रही थी कि हमें नौकुचियाताल में मिली है बुकिंग वो तो कैंची धाम से थोड़ा दूर है पर वहां जाकर पता चला कि बाबा ने हमारे लिए नौकुचियाताल शायद इसीलिए चुना क्योंकि हम पूरे समय बाबा के दर्शन कर सके क्योंकि हमारे रिसोर्ट के रोड से नौकुचियाताल में भक्ति धाम का मंदिर पांच मिनट के रास्ते पर है हम सुबह शाम वहां दर्शन करते थे।
अगले दिन उसके बाद हम कैंची धाम के दर्शन करने के लिए गए, और वह अनुभव इतना अध्यात्म से भरा था कि उसको शब्दों में कह पाना बहुत मुश्किल हैं। वापसी से एक दिन पहले हम नैनीताल घूमने गए बस से वहां पर पहुंचकर हमें नैनीताल पूरा घूमा और वापस नौकुचियाताल आने के लिए बस स्टॉप पर खड़े थे बस आने में दस मिनट बाकी थे तभी अचानक जैसे बाबा की इच्छा थी कि हमें हनुमानगढ़ी आना है। मैंने पढ़ा तो था हनुमानगढ़ी के बारे में कि वहां भी बाबा ने एक मंदिर हनुमान जी का बनाया है। मैं उस समय भूल गई थी कि वह कहां है। बस स्टॉप पर मेरे बगल में एक सिपाही आकर खड़ा हुआ और उसने हनुमानगढ़ी का नाम लिया जैसे ही उसने हनुमानगढ़ी का नाम लिया मुझे ध्यान आया अरे वहां भी मंदिर है और मुझे जाना है। मैंने अपने पति से बोला कि हमें हनुमानगढ़ी के मंदिर जाना है पर मेरे पति ने कहा बस आने वाली है और अगली का कोई टाइम नहीं है अगली बार देख लेंगे, मुझे अंदर बहुत दुःख हुआ और मैंने बाबा से कहा क्या बाबा इतने पास आकर भी मै बिना दर्शन के जाऊंगी।
..................................
गुंजन दीपांकर शर्मा
दिल्ली