धर्म रक्षक सदगुरु हनुमान


धर्म रक्षक सदगुरु हनुमान


         हनुमान जी भगवान शिव के अवतार हैं जिन्हें जगद्गुरु कहा गया है। जगद्गुरो नमस्तुभ्यं शिवाय शिवदाय च। योगीन्द्राणाम योगीन्द्र गुरुणाम गुरवे नमः। भगवान शिव पूरे संसार के गुरु हैं। स्वर और व्यंजन की उत्पत्ति उनके डमरु से हुई है। बिंदु और व्याहृतियों के जनक भी वहीं हैं। प्रत्यय और प्रत्याहार के कारक भी देवाधिदेव भगवान शिव ही हैं। योगीन्द्रों के योगीन्द्र हैं। गुरुओं के गुरु हैं। उन्हीं के अवतार हैं, भगवान हनुमान। पूरे संसार का धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन कर रहे हैं। उनके संपर्क क्षेत्र में जो भी आया, उन्होंने उसका कल्याण ही किया। उसका मार्गदर्शन ही किया। वे संसार के गुरु हैं। बड़े धर्म रक्षक हैं। हनुमान जी परम जिज्ञासु हैं। भगवान सूर्य के शिष्य हैं। अष्ट सिद्धि, नवनिधियों के दाता हैं। गुरु तो वही होता है जो अपनी शक्तियों का शिष्य में हस्तांतरण कर सके। हनुमान जी लघु और सूक्ष्म दोनों ही तरह का रूप धारण करने में समर्थ हैं वे शक्ति में नहीं, भक्ति और विनम्रता में विश्वास करते हैं। उन्हें पता है कि भगवान सरल और निश्छल भक्त को ही पसंद करते हैं। उनका दावा भी है कि निर्मल मन सो नर मोहिं पावा। मोहिं कपट छल छिद्र न भावा। हनुमान जी की सरलता देखनी हो तो उनके जवाब पर विचार करना चाहिए जो उन्होंने भगवान राम को दिए थे। सीता जी की खोज के बाद भगवान राम  ने उनसे पूछा था कि कहु कपि रावण पालित लंका। केहि विधि दुर्ग दहेउ अति बंका। दूसरा व्यक्ति होता तो अहंकारी हो जाता। आत्म प्रशंसा से युक्त जवाब देता लेकिन हनुमान जी ने जो जवाब दिया, वह विश्व भर के सेवकों के लिए आदर्श है। सेवक अगर ऐसा शालीन जवाब देना सीख जाएं तो मालिक और सेवक के बीच का फर्क ही मिट जाए। हनुमान जी ने कहा था कि


साखामृग कै बड़ी मनुसाई। सखा ते साखा पर जाई।


नाधि सिंधु हाटक पुर जारा। निसिचर गन बधि विपिन उजारा।


सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोर प्रभुताई।



जब हम गुरु का विचार करते हैं तो उसमें कौन-कौन सी योग्यता देखते हैं। गुरु हमारा समर्थ हो। हमें हर संकट से उबरने वाला हो। परम ज्ञानी हो। परम विवेकी हो। परम धार्मिक हो। परम सिद्ध हो। त्यागी हो, तपस्वी हो, निष्कलंक हो। लोक में उसकी प्रशंसा हो। गुरु को लेकर संसार में एक बात प्रसिद्ध है कि जगद्गुरु ब्राह्मण और ब्राह्मण गुरु संन्यासी। संसार का गुरु ब्राह्मण और ब्राह्मण का गुरु संन्यासी होना चाहिए। हनुमान जी ब्राह्मण भी हैं और संन्यासी भी है। विप्र रूप धरि कपि तह गयउँ। गोस्वामी तुलसीदास के वास्तविक गुरु तो नरहरि दास जी हैं लेकिन उनकी अलग मार्गसत्ता तो हनुमान जी हैं। तभी तो तुलसीदास जी ने उनके लिए लिखा है कि जै जै जै हनुमान गोसाईं। करहुं कृपा गुरुदेव की नाई। हनुमान जी भक्ति और वैराग्य हैं। उनके बिना प्रभु श्रीराम से मिलन हो ही नहीं सकता। तुलसीदास जी को भगवान राम के दर्शन तक नहीं हुए जब तक उन्हें हनुमान जी ने आगाह नहीं किया। हनुमान जी ने तोते की वाणी में संकेत किया। चित्रकूट के घाट पर भई संतान की भीर। तुलसीदास चंदन घिसें तिलक देत रघुवीर। राम चरित मानस के लेखन में ही कई ऐसे प्रसंग आए हैं, जब तुलसीदास सोच विचार में पड़ गए कि अब क्या करें। तब हनुमान जी ने ही मार्गदशन कर उनकी काव्य यात्रा को गति दी। एक चौपाई है गिरा अनल मुख पंकज रोकी। प्रकट न लाज निस अवलोकी। ऐसी दर्जनाधिक चौपाइयां हैं, जिन्हें पूर्ण कराने में हनुमान जी ने उनकी मदद की। गुरु मंत्र देता है। मंत्र का अर्थ होता है सलाह। विभीषण ने हनुमान जी की सलाह मानी तो फायदे में रहे। वर्ना रावण के साथ वह भी मारा जाता। तुम्हरो मंत्र विभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना। सुग्रीव को उन्होंने राम से मित्रता की सलाह दी। संत की सलाह सुख देती है। सलाह तो उन्होंने रावण को भी दी थी हनुमान जी असल गुरु तो रावण के ही थे। रावण भगवान शिव का शिष्य था। हनुमान जी शिवावतार हैं। गुरु कभी भी अपने शिष्य का अमंगल नही चाहता। तभी तो कबीर लिखते हैं कि गुरु हमारा बणिया करे यही व्यापार। बिन डांडी बिन पालड़ा जोखे सब संसार। हनुमान जी रावण को ज्ञान और भक्ति की कसौटी पर तौल रहे हैं लेकिन रावण है कि मानने और जानने को तैयार ही नहीं है। मिला गुरु आज महा कपि ज्ञानी कहकर वह उनका अपमान करता है।


         हनुमान जी ने रावण से कहा था कि में करुणावश तुम्हारे हित की बात समझाने के लिए ही यहां बंधकर आया हूँ। रावण तुम विवेक पूर्वक संसार की गति का विचार करो। राक्षसी बुद्धि को मत अंगीकार करो और भव बंधन से छुड़ाने वाली प्राणियों की अत्यंत हितकारिणी दैवी गति का सहारा लो। उन्होंने तो रावण से यहां तक कहै कि गये शरण प्रभु राखिहैं सब अपराध विसार। लेकिन रावण की मति मारी गई थी। तभी तो वह सर्वनाश को प्राप्त हो गया। इक लख पूत सवा लाख नाती। ता रावण घर दिया न बाती। सुंदर कांड इसलिए भी सुंदर कांड है कि वहां विचार भी है और प्रभु का स्मरण भी है। वह लघुता से आरंभ होता है और प्रभुता की पराकाष्ठा तक पहुंचता है। लघुता ते प्रभुता मिले प्रभुता से प्रभु दूर का भाव यहीं उपजता है। गुरु शिष्य के अहंकार को बढ़ने नहीं देता। रावण को अहंकार है। वह हनुमान जी से कहता है कि लंका के राजा रावण का क्या नाम कान से सुना नहीं। हनुमान जी कहते है कि हैं, वही रावण न जिसे सहस्त्रबहु ने अपनी कांख में दबा लिया था। प्रभु श्रीराम का स्वभाव और प्रभाव दोनों बताने में वे पीछे नहीं रहे। उन्होंने रावण को सलाह दी कि वह सीता को लौटा दे। लेकिन रावण ने उनकी बात नहीं मानी जो गुरु की बात नहीं मानता धोखा खाता है। हनुमान जी अपने भक्तों के सच्चे मार्गदर्शक हैं। वे अपने भक्तों की मदद करते रहते हैं। हनुमान जी से भगवान राम ने कहा था कि जब तक इस धरती पर मेरी कथा होती रहे तब तक तुम यहीं रहो। हनुमान जी जहां कहीं राम कथा होती है वहां उपस्थित रहते हैं। संसार में भगवान की भक्ति भावना को बनाये रखने का काम भी हनुमान जी करते हैं। कबीर ने लिखा है बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय। हनुमान जी अपने भक्तों को भगवान राम का आशीर्वाद दिलाते हैं। हनुमान जी को राम पसंद हैं और राम जी हनुमान। हनुमान जी के बारे में कहा गया है कि वे भगवान राम के सेवक भी हैं स्वामी भी हैं और मित्र भी हैं। सेवक, स्वामी, सखा, सिय पी के। हित निरुपधि सब विधि तुलसी के। किसी का सभी प्रकार से हित करने वाला तो गुरु ही हो सकता है। गुरु के बिना संसार सागर को पार नही किया जा सकता। प्राचीन ऋषियों में बहुत सारे ऋषि भगवान शिव के शिष्य रहे हैं। हनुमान जी परम गुरु हैं। ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ हैं। ऐसे गुरु को पाकर भला कौन राम पदानुरागी नही होगा।


         बुंदेलखंड में बुन्देल की महिलाएं हनुमान जी को लोरी सुनाती हैं। इसकी पंक्ति है कोन गुरु के चेला भये कौनाने फूंके कान । राम जू के चेला भये शिव शंकर ने फुके कान। जिसके कान खुद भगवान शिव ने फूंके हों वे राम भक्त हनुमान जिसका मार्गदर्शन कर दें उसका क्या कहना। हनुमान जी कल्याण की मूर्ति हैं। गुरु को परम कल्याणकारी कहा गया है। गुरु अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करता है हनुमान जी सारी बुराइयों को जड़ से काट देते हैं हनुमान जी संतों का हित करने वाले हैं। गुरु अपने शिष्यों के हित करता है हनुमान जी प्राणी मात्र के गुरु हैं। भक्ति योग के पुरोधा हैं। साक्षी हैं। चेता हैं और केवल निर्गुण हैं। वे जानते हैं कि जीव जब भगवान के सम्मुख जाता है तो उसके करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। हनुमान जी को गुरु मानने वाला दुखी नही रहता।


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सियाराम पांडेय शांत
लखनऊ