अपनी बात march - 2019

                इस संसार में हर व्यक्ति वही कार्य करता है जो उसे अच्छा लगता है। जिस तरह शराब पीने वाले को शराब, अपराध करने वाले को अपराध तथा घूस लेने वाले को घूस अच्छी लगती है, उसी तरह अच्छे विचार रखने वाले सज्जनों को ईश्वर भजन, कथा भागवत व साधु-संतों के सत्संग में आनंद आता है। जन्म से मृत्यु तक अधिकतर लोगों का जीवन बचपन, पढ़ाई, नौकरी, शादी, बच्चे, बच्चों की शिक्षा व उनके विवाह आदि में ही बीत जाता है। बुढ़ापे में शरीर कमजोर हो जाने की वजह से चाहकर भी वह कुछ नहीं कर पाता। इस सच्चाई से सभी वाकिफ हैं कि दुनिया में बने रिश्ते तभी तक हैं जब तक व्यक्ति जिन्दा है, सांस थमने और आँख बंद होते ही सारे रिश्ते खुद ब खुद खत्म हो जाते हैं। घर-परिवार व धन-सम्पत्ति के मोह में फंसा इंसान जीवन भर परेशान रहता है और अंत समय जब हर तरफ से असहाय हो जाता है तब भगवान को याद करता है कि प्रभु उसे बचा लें। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। गृहस्थ जीवन जीते हुए और पारिवारिक जिम्मेदारी निभाते हुए ही आध्यात्म की ओर मुड़ जाना श्रेयकर है। ऐसा करने वाले लोग अपना यह जीवन तो संवारते ही हैं, अगले जीवन के लिए भी पुण्य संचित कर लेते हैं। हनुमत कृपा पत्रिका का प्रकाशन भी इसी दिशा में बढ़ा एक कदम है। पत्रिका के प्रकाशन से कितनी ख़ुशी मिलती है इसे लिखा नहीं जा सकता सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। यह मात्र यह आध्यात्मिक पत्रिका नहीं है मेरा सपना और मेरा जीवन है। पत्रिका में छपे लेख का एक एक शब्द मेरी सांसे हैं, जब तक हनुमत कृपा का प्रकाशन होता रहेगा, मैं अपने को जीवंत महसूस करूंगा। हनुमत कृपा के न छपने का मतलब है, मैं वजूद नहीं रहा। पत्रिका कैसे प्रकाशित होगी, यह हनुमान जी जानें। हमें तो सिर्फ पत्रिका के लिए अच्छे से अच्छे लेख, फोटो आदि इकट्ठा करना है, ताकि जब भक्तों के पास पत्रिका जाये तो उन्हें भरपूर पठनीय व प्रेरणादायक सामग्री मिल सके। दुनिया में हनुमान जी के करोड़ों भक्त हैं, हनुमत कृपा पत्रिका की प्रतियां सीमित तादाद में छपती हैं इसलिए सबको प्रति भेज पाना संभव नहीं। व्हाट्सअप के जरिये अधिक से अधिक भक्तों तक पत्रिका की पीडीएफ फाइल भेजने की इच्छा है। प्रयास कैसा है, जरूर बतायें साथ ही, सुझाव भी दें ताकि पत्रिका को और बेहतर बनाया जा सके।



                हनुमत कृपा पत्रिका निःशुल्क जरूर है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि पत्रिका को सिर से लगाकर बिना पढ़े पूजा की अलमारी में अन्य धार्मिक व आध्यात्मिक पुस्तकों के बीच रखकर भूल जाया जाये और याद तब आये जब मेरे द्वारा फोन करके या मिलकर पूछा जाये कि पत्रिका कैसी लगी? प्रभु में आस्था व विश्वास के साथ लेखों को पढ़ना और चिंतन करना ही पत्रिका का मूल्य व प्रकाशन का उद्देश्य है। अधिक अधिक से अधिक भक्तों तक पत्रिका की पीडीएफ फाइल भेजने की इच्छा है। प्रयास कैसा है, जरूर बतायें से अधिक भक्तों तक ’हनुमत कृपा’ पहुंचे इसके लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। बावजूद इसके जिन भक्तजनों को किसी कारणवश पत्रिका न मिले वह सीधे सम्पर्क कर हनुमत कृपा का अंक हासिल कर सकते हैं।
जय श्रीराम । जय हनुमान ।