सृष्टि के सर्वमान्य देवता हनुमानजी
मेरा जन्म सुल्तानपुर के गाँव पिपरी साईनाथपुर में हुआ। विधि का विधान ही मानें कि जन्म से दो माह पूर्व मेरे पिताजी इस संसार को छोड़कर स्वर्गवासी हो गये। बाल्यकाल से ही प्रभु की कृपा एवं प्रारब्ध के कुछ पुण्य ही कहें कि हनुमानजी ने अपने चरणों में स्थान दिया और तबसे निरन्तर यथासम्भव पूजन-अर्चन एवं प्रभु चर्चा में मन लगा रहता है। बचपन से पूजा पाठ करने की प्रेरणा मेरी माताजी से मिली, आज भी वे प्रातः 5 बजे उठकर घर में ही बने मन्दिर में पूजा, आरती करती हैं और संध्याकाल में भगवान की पूजा करती हैं।
वर्तमान समय में हनुमानजी का भजन कीर्तन करते हुए सारा जीवन इन्ही के चरणों में एवं भक्ति में गुजारने की लालसा नित्य बनी रहती है। हर मंगलवार को लखनऊ स्थित हनुमान सेतु मन्दिर में अपने एक अन्य भक्त के साथ हनुमानजी दर्शन सुन्दरकाण्ड का पाठ करता हूँ। माह के आखिरी मंगलवार को अयोध्या जाकर सरयू में स्नान करके हनुमान गढ़ी मे संकटमोचन के दर्शन एवं सुन्दरकाण्ड का पाठ करते हुए जीवन भक्तिमय गुजरता रहे। यही प्रार्थना हमेशा हनुमानजी से करता हूँ।
यूँ तो हनुमानजी के कई नाम है, अंजनीपुत्र, संकटमोचन, बजंरगबली इत्यादि। परन्तु इनका सबसे प्रचलित नाम हनुमान है। इसका अर्थ है हनु$मान त्र हनुमान। हनुमानजी ने अपने मान का हनन कर दिया श्री राम के सामने इसी से इनका नाम हनुमान पड़ गया। जैसा कि मानस कि सुन्दरकाण्ड में लिखा है-
मोहि न कछु बाँधे कै लाजा ।
कीन्ह चहहुँ निज प्रभु कर काजा ।।
हनुमान को मेघनाथ पकड़कर बाँध नही सकता था वे तो जानबूझकर उसके नागफास में अपने का बँधवा लिया था ब्रह्मास्त्र हनुमानजी को लगा नहीं।
तेहि देखा कपि मुरछित भयऊ ।
नागपास बाँधेसि लै गयऊ ।।
हनुमानजी तो नागफास देखते ही मुर्छित होने की लीला किये। हनुमानजी केवल कलयुग के ही देवता नही है। इनका प्रताप तो चारों युगों में रहा है और जब तक ये सृष्टि है तब तक इनकी पूजा अर्चना संसार में होती रहेगी।
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा ।।
विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी हनुमानजी का चित्र सदैव अपने साथ रखते है। वर्तमान समय मे सबसे अधिक मन्दिर व भक्त हनुमानजी के ही है। अधिकाशतः पुलिस थानो में भी हनुमानजी के मन्दिर हैं।
भगवान श्रीराम जब सारी मानव लीलाएं समाप्त कर चारों भाइयों के साथ फैजाबाद स्थित गुप्तारघाट पर सरयू के जल मे प्रवेश किये इससे पहले उन्होंने अयोध्या की देखरेख का जिम्मा हनुमानजी को सौंपा था। आज भी जब कोई कोतवाल अयोध्या कोतवाली का प्रभार संभालता है तो सर्वप्रथम वह हनुमान गढ़ी जाकर हनुमानजी का दर्शन करता है, उसके बाद वह कोतवाली का काम शुरू करता है।
मान्यता है कि जब बाबर ने श्रीराम जन्मभूमि का मन्दिर तोड़ा और उस पर मस्जिद बनवाना आरम्भ किया तो वहाँ जितना भी दिन भर निर्माण होता था, हनुमानजी रात्रि में उस निर्माण को गिरा देते थे। यह सिलसिला कई दिन तक चला। जब किसी भी तरह से मस्जिद निर्माण में सफलता नहीं मिली तब इनके प्रमुख सलाहकारों ने मन्दिर के मुख्य पुजारी से इसका रहस्य उपाय पूछा तो पुजारी ने बताया कि हनुमानजी यहाँ के राजा है। भगवान राम पृथ्वी लोक से अन्तर्ध्यान होने से पहले अयोध्या की जिम्मेदारी हनुमानजी को ़सौपी है। यदि यहाँ भगवान श्री राम की मूर्ति स्थापना रहेगी तभी यह कार्य सम्भव होगा। बाबर ने मूर्ति स्थापना का आदेश दिया। मूर्ति स्थापना हुई दीवारें मन्दिर की थी और उसके ऊपरी हिस्से को गुम्बद का आकार देकर वहीं छोड़ दिया गया। ये है हनुमानजी की महिमा। तभी कहा गया-
‘‘कवक सो काज कठिन जग माहीं ।
जो नहि होय तात तुम्ह पाहीं ।।’’
हनुमानजी श्रीराम की भक्ति में हमेशा इतने तल्लीन रहते हैं कि उन्हे अपनी ताकत का आभास नहीं रहता है। तभी तो जब माता सीता की खोज के लिए वानर भालू समुद्र तट पर एकत्रित हुए और सभी ने समुद्र लाँघने मे असमर्थता जतायी। हनुमानजी मौन रहे तब जामवन्त ने उन्हे उनकी ताकत की याद दिलाई।
राम काज लगि तव अवतारा, सुनतहिं भयउ पर्वताकारा
तब हनुमानजी गर्जनाकर उठे और अपना आकार बड़ा करके बोले -
सिंहनाद करि बारहि बारा, लीलऊँ नाघउँ जलनिधि खारा सहित सहाय रावनहिं मारी, आनहुँ इहाँ त्रिकूट उपारी
उन्होंने जामवन्त से पूछा करना क्या है समुद्र को लाँघ जाऊँ या इसे पी जाऊँ अर्थात समुद्र को अस्तित्व विहीन कर दूँ। रावण को सहयोगियो सहित मारकर त्रिकूट पर्वत वर वसी लंका को उठा लाऊँ। तब जामवन्त ने कहा इससे कोई कार्य नहीं करना है। केवल माता जानकी को खोजने को आदेश मिला है वही कार्य करना है।
एतना करहुँ तात तुम जाई ।
सीतहिं देखि कहहु सुधि आई ।।
हनुमानजी की महिमा अनन्त है। इनका गुणगान कभी समाप्त नहीं हो सकता है। प्रार्थना है कि हनुमानजी के गुण हमारे जीवन मे उतर जाए। हमारा जीवन बदल जाए। परिवर्तन तभी होगा जब हमारे कर्मो मे सद्गुणों का समावेश होगा। केवल ज्ञान की बातें करने से फायदा होने वाला नहीं है। हमने कभी विचार किया कि इस संसार में मानव रूप में जन्म लेने का उद्देश्य क्या है? रामचरित मानस मे लिखा है-
बड़े भाग मानुस तन पावा, सुर दुर्लभ सब ग्रंथनि गावा
महाकवि तुलसीदास ने मानव जीवन को प्राप्त करने में बडे़ भाग्य क्यों लगाया? यह शरीर देवताओं को क्यो दुर्लभ है ऐसा वेद ग्रन्थों में वर्णित है हम सांसारिक चीजों के विछोभ से दुखीः होते है। रोते है जो नश्वर है। क्या हम कभी परमात्मा की प्राप्ति के लिए दुखी हुए। कभी आँखो से आसूँ निकले। अगर नहीं तो विचार कीजिए कि हम इस भौतिकवादी संसार में क्या कर रहे है। सुबह से शाम तक कितनी बार परम इष्ट देव को याद करने में निकालते हैं। हम प्रभु से दया की उम्मीद करते है पर दया का उल्टा करके देखें याद होता है कितने पल हम उन्हें याद करते है। महर्षि वाल्मीकि के बारे में सभी जानते है कि मरा-मरा जपकर वह महर्षि वाल्मीकि हो गये।
‘‘उलटा नाम जपत जग जाना ।
वाल्मीकि भए ब्रह्म समाना ।।’’
इंसान घर बदलता है, लिवास बदलता है
रिश्ते बदलता है, दोस्त बदलता है ।
फिर भी परेशान क्यों रहता है
क्यों वो खुद को नही बदलता’’ ।।
उम्र भर हम यही भूल करते रहे।
धूल चेहरे पर थी और आइना साफ करते रहे।।
धर्मेन्द्र सक्सेना
सुल्तानपुर