सच्चे सदगुरु व मार्गदर्शक

सच्चे सदगुरु व मार्गदर्शक




ऊँ जयव्यति बलो रागो लक्ष्मणश्च महाबलः ।
राजा जयति सुग्रीवो राधवेणाभिपालितः ।।
दासो अहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्ट कर्मणः ।
हनूमान शत्रु सैन्यानां निहन्ता मारुतात्मजः।।
न रावण सहस्त्रंमे युद्धे प्रतिबलं भवेत् ।
शिलाभिश्च प्रहरतः पाद पैश्च सहस्त्रशः ।।
अर्दयित्वा पुरीं लकांऽभि वाद्य च मैथिलीम् ।
समृद्धयर्थो गमिष्यामि मिषतां सर्वरक्षसाम् ।।
जिसकी महिमा का वर्णन करते हुए स्वयं रघुनाथ मौन धारण कर लेते है। श्री रघुनाथ के परमप्रिय भक्त हनुमान की महिमा का गुणगान मैं अल्पज्ञ कैसे कर सकती हूँ।
‘‘मैं हूँ बुद्धि मलीन अति, श्रद्धा भक्ति विहीन ।
करूँ विनय कहु आपकी, हौं सबही विधि दीन ।।
भावना ही भगवान का अवतरण कराती है और इस अद्भुत भावना का उदय हमें हनुमान के सानिध्य और उनकी अनुपम कृपा से ही प्राप्त हुआ है। अपनी परम भक्ति और प्रेम के द्वारा ही हनुमानजी ने भी रघुनाथ को वश में कर लिया-
‘‘सुमिरि पवन सुत पावन नाम ू।
अपने वश करि राखे रामू ।।’’
हनुमानजी की अनुपम भक्ति का समन्वय बड़े पिताजी डा. आर.एस. द्विवेदी (रामानन्द सरस्वती) के अथक प्रयास के कारण ही प्राप्त हुआ है। जिस प्रकार रघुकुल नरेश महाराज भगीरथ मोक्षदायिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर समस्त लोक का कल्याण किया। उसी प्रकार बड़े पिता जी डा. द्विवेदी अपनी श्रद्धा व भक्ति के द्वारा श्रीसंकटमोचन हनुमान को प्रतिष्ठित करवाकर हम सभी को अनुग्रहीत कर दिया। जन्म जन्मान्तर के पूर्वज धन्य हो गये। 13 जून 2003 को परम पूज्य महंत नृत्य गोपालदास के कर कमलों द्वारा हनुमान विग्रह प्रतिष्ठित हुई। श्रीहनुमानजी के आगमन से पिपरी साईनाथ पुर ग्राम की धरती धन्य हो गयी और यह गाँव हनुमतपुरम् के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसी दिन से भाग्य का उदय हुआ। वर्षो से हमारे पूर्वज श्री हनुमानजी की आराधना करते आए है किन्तु 2003 में हनुमानजी के आगमन से हमारी भक्ति एवं श्रद्धा जीवंत हो गयी। समस्त क्षेत्र में आनन्द की लहर दौड़ पड़ी। ईश्वर की कृपा से ऐसे महात्माओं के दर्शन सहजता से प्राप्त हुए जिनके चरणों की रज प्राप्त करने के लिए जन समुदाय प्रतीक्षारत रहता है। गोस्वामी जी ने कहा है-
पुन्य पुंज बिनु मिलहिं न संता ।
सत्संगति संसृति कर संता ।।
जब कई जन्मों का पुण्य उदय होता है तभी संतो के दर्शन प्राप्त होते है और परमज्ञानी संत श्री हनुमानजी के आगमन से ही हमें पूज्य महंत नृत्यगोपालदास (अयोध्या), अद्रैतानन्द महाराज (ऋषिकेश) अखिल जी महाराज (वृन्दावन), महामंत्रदास (दिल्ली) और मानसमर्मज्ञ संत प्रेमदास रामायणी महाराज (प्रयाग) जैसे अलौकिक महात्माओं का दर्शन सुलभ हुआ।
जौं रघुवीर अनुग्रह कीन्हा ।
तौ लुम्ह मोंहि दरसु हठि दीन्हा ।।
श्री हनुमानजी ही हमारे सद्गुरू और मार्गदर्शक है। हमारा अस्तित्व हमारे नाथ की कृपा से ही है जिनकी असीम कृपा से हमारा जीवन आनन्दमय है। बचपन से ही पितामह स्व0 हरिनारायण द्विवेदी ने हमे अध्यात्म की ओर प्रोत्साहित किया। आज वे दुनिया मे नहीं है परन्तु उनके दिये संस्कार सदैव परिवार में जीवित रहकर उनका स्मरण कराते रहेंगे। आध्यात्मिक कार्यो में पूर्ण सहयोग मुझे माँ और बहन आकांक्षा से मिलता रहता है जिसके लिए सदैव ईश्वर की आभारी रहूँगी जिसने मुझे ऐसे परिवार में भेजा।
श्रीसंकटमोचन हनुमान मन्दिर का निर्माण ईश्वर की कृपा बड़े पिता जी डा. द्विवेदी के अथक प्रयास एवं पिता अशोक द्विवेदी (एडवोकेट) के नेतृत्व में हुआ। आज हमारा जो भी अस्तित्व है उसका श्रेय हनुमानजी को ही जाता है।
सो सब तौ प्रताप रघुराई ।
नाथ न कहु मोरि प्रभुताई ।।
जा पर कृपा राम कर होई ।
ता पर कृपा करहिं सब कोई ।।


आराधना द्विवेदी
त्रिवेणी नगर, लखनऊ