हनुमानजी जो मातृ शक्ति

 


हनुमानजी जो मातृ शक्ति 



सुरसा जी बता देती हैं कि मुझे देवताओं ने जिस कार्य के लिये भेजा था - उसमें तुम शत प्रतिशत उत्तीर्ण हुये हो - तुम बल और बु़द्ध के भण्डार ही हो। श्री राम के सभी कार्य कर सकने की तुममें ही दक्षता है। आर्शीवाद देकर वह चली जाती है और हमारे हनुमानजी महाराज हर्षित होकर आगे बढ़ जाते हैं सोचिये विजेता होकर भी नमस्कार करने की विनम्रता हनुमानजी में है। 
अहंकार के ही महाप्रतीक रावण की लंका में जा रहे हैं हनुमानजी जो मातृ शक्ति तथा दैवी सामर्थ्य के प्रति अत्यन्त विनम्र हैं श्रद्धा रखते हैं किन्तु अपने लक्ष्य ‘रामकाज’ को कभी भी विस्मृत नहीं करते। बुद्धि बल दोनों ही श्री हनुमानजी के आभूषण हैं। भय रहित हैं ‘राम’ नाम की सर्वोच्च शक्ति उनके रोम-रोम में है - ‘राम’ नाम की मुद्रिका मुख में ही है - आगे विकट बाधा आती है - ‘सिंहिका’ के रूप में जो हनुमानजी को ग्रास बना लेने को ही तत्पर है - राहु की माता यह सागर के अन्दर ही रहकर छाया ही पकड़ लेती थी व उसे गिराकर खा जाती थी। हनुमानजी की इस विशाल छाया को पकड़ने का प्रयास किया हनुमानजी उसके उस छल कपट को तुरन्त ही भाँप गये कि यह तो असली बाधा ही है नकारात्मक - -
‘‘निसिचर एक सिन्धु महँ रहई । 
करि माया नभु के खग गहई ।।’’
‘‘जीव जन्तु जे गगन उडाहीं । 
जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं ।।’’
‘‘सोई छल हनुमान कह कीन्हा । 
तासु कपट कपि तुरतहि चीन्हा ।।’’