एही भाँति चलेउ हनुमाना

एही भाँति चलेउ हनुमाना



हनुमानजी के अन्दर भी ये तीनों विद्यमान हैं तभी तुलसीजी वर्णन करते हैं कि ‘‘एही भाँति चलेउ हनुमाना।।’’ - - और सत्य भी यही रहा ‘‘हनुमान नाम के इस अद्भुत अमोघ बाण’’ को कोई भी विचलित ना कर पाया। अमोघ बाण का यही तो लक्षण है और सार्थकता है हाँ प्रयास अवश्य किया कइयों ने किन्तु श्री हनुमानजी तो अमोघ बाण रहे हैं तो लक्ष्य पूर्ण करके ही लौटे प्रयास भी भाँति-भाँति के हैं ध्यान दें जीव भी चाहे तो प्रभु के अमोघ बाण की ही भाँति बाधाओं को पार करते उत्तम जीवन स्तर व सार्थक जीवन की प्राप्ति कर सकता है। बाधायें भी स्थत्विक राजस तमस रूपी रही देखे। 
सर्वप्रथम ‘राम काजु’ को चले हनुमानजी की बल बुद्धि की परीक्षा होती है मैनाक पर्वत द्वारा - भले ही वह अतिथि सत्कार की मित्र भावना से, विश्राम देने को आगे बढ़ते हैं किन्तु व्यवधान तो उत्पन्न कर ही देते हैं। कभी इन्द्रदेव के आदेश पर सभी पर्वतों के पंख काट दिये गये थे। मैनाक को पवन देव का ही तनय राम दूत बन राम काज को चला है तो अपने स्वर्ण पर्वत पर उसे विश्राम के लिये आमंत्रित करो तो कृतज्ञता ज्ञापन के लिये वह आगे आते हैं सोचे वह भजन कि जिसमे भक्त गण गान करते हैं कि 
‘‘राम ते अधिक राम कर दासा ।।’’ 
- कि सागर को परामर्श दे रहा है मैनाक को कि रामदूत को विश्राम के लिये आमंत्रित करो और स्वयं ‘राम’ को ही मार्ग नहीं दे रहा था तीन दिन की प्रतीक्षा करवाई। आत्मीय जनां द्वारा प्रगट स्नेह सुख सुविधा के साधन सभी वस्तुत कर्म लक्ष्य की प्राप्ति में बाधक ही तो बन जाते हैं। भले ही सुख विश्राम का हो प्रलोभन अनजाने में ही बाधक बनता ही है संग्रह की वृत्ति यदि अच्छी नही है तो त्याग का अहंकार भी कम घातक नही हैं। सन्तुलन ही इसका सर्वश्रेष्ठ समाधान है ना लोभ को समर्थन है न त्याग का प्रदर्शन है यही है आदर्श स्थिति और श्री हनुमानजी इसके सर्वश्रेष्ठ प्रतीक हैं।
साधक ना तो स्वर्ण को ठुकराता है ना अपनाता है विनम्रता से धन्यवाद दिया अपनी कृतज्ञता व्यक्त की और लक्ष्य की ओर चल पडे़।
‘‘हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम । 
राम काजु कीन्हे बिनु मोहि कहाँ विश्राम ।।’’
‘‘हेम शैलाभदेहं’’ तो वह स्वयं ही हैं।
अब आगे पुनः दूसरा व्यवधान उत्पन्न हो गया देवता जो कि (रजोगुणी प्रवृत्ति) ईष्या और चिन्ता दोनों ही हृदय में धारण करते हैं वह हनुमानजी को जाते देखते हैं तो मन में चिन्ता उठी कि इस वानर में ऐसा कौन सा बुद्धि कौशल है कि श्री राम ने इन्हें चुना है, रावण की आज्ञा तो सभी देवता पालन करते हैं और पवन का यह पुत्र भला क्या कर पायेगा।
‘‘रवि ससि पवन बरुन घनघारी । 
अगिनि काल जम सब अधिकारी ।।’’
‘‘ब्रह्मसृष्टि जहँ लगि तनुधारी । 
दसमुख बसबर्ती नर नारी ।।’’ 
तो स्वयं तुलसी ही बता चुके हें