भारत में पारथ के रथकेतु कपिराज


भारत में पारथ के रथकेतु कपिराज,
गाज्यो सुनि कुरूराज दल हलबल भो।
कह्यो द्रोन भीषम समीरसुत महाबीर,
बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो।।
बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि,
फलॅंग फलाँगहूँतें घाटि नभतल भो।
नाइ-नाइ माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं,
हनुमान देखे जगजीवन को फल भो।।



               भावार्थ- महाभारत में अर्जुन रथ की पताका पर कपिराज हनुमान जी ने गर्जन किया, जिसको सुनकर दुर्योधन की सेना में घबराहट उत्पन्न हो गयी। द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह ने कहा कि ये महाबली पवन कुमार हैं। जिनका बल वीररस रूपी समुद्र का जल हुआ है। इनके स्वाभाविक ही बालकों के खेल के समान धरती से सूर्य तक के कुदानने आकाश मण्डल को एक पग से भी कम कर दिया था। सब योद्धागण मस्तक नवा-नवाकर और हाथ जोड़-जोड़कर देखते हैं। इस प्रकार हनुमान जी का दर्शन पाने से उन्हें संसार में जीने का फल मिल गया।।