आस्था व विश्वास से मिलती हनुमत कृपा

आस्था व विश्वास से मिलती हनुमत कृपा



ईश्वर आस्था एवं विश्वास है। इस परिकल्पना के साथ यदि जीव जब अपने आराध्य पर निर्भर होकर कर्म करता है तो वहीं फलदाता अपना दायित्व पूरा ही कर देता है। हम इस संसार में किस पायदान पर है यही हम नहीं जानते किन्तु यह मानने के हम तैयार भी नहीं है कि हमारा पायदान धरातल की निचली सीढ़ी है। व्यक्ति यदि अपना अनुभव व्यक्त करता है जो बड़े चढ़ाव उतार की जिन्दगी की अनुभूति पर आधारित होता है। वह आत्मा की अभिव्यक्ति होती है और जीव (मनुष्य) कर्म पर आधारित रहता है। किन्तु कभी-कभी कर्मों के उपरान्त अपेक्षित फल परिलक्षित नहीं दिखता तो भाग्य एवं परमात्मा पर भडास निकलता है। जैसे एक अबोध बालक को सर्प सुन्दर लगा हो और वह उसे पकड़ने की चेष्टा कर बैठे, किन्तु संरक्षक बालक को खींचकर सर्प से दूर कर देता है। ठीक उसी तरह प्रभु इस अहंकारी अज्ञानी किन्तु अपने को ज्ञानवान समझने वाले जीव को उसके मन में उपजे विकृत आचरण से सदैव दूर करते रहते हैं। मैं अपने आराध्य देव (प्रभु संकट मोचन) के बारे में कुछ व्यक्त करने में अक्षम हूँ। क्योंकि मैंने इस अब तक के जीवन की अनुभूति में जब से प्रभु की शरण में आया मैंने देखा कि मेरे द्वारा जाने अनजाने या स्वार्थ में किये गए कर्मो का परिणाम यदि कही भयावह दिखा तो शरणागत होकर प्रायश्चित करने पर विराट दयालु सहृदय प्रभु जी उबार लेते है।
मैं प्रभु हनुमानजी की विशेषता व व्याख्या करने के काबिल नहीं हूँ। मुझे यह अनुभूति हुई है कि ‘करहिं सदा सेवक पर प्रीती’ कितने क्षमाशील हैं मेरे प्रभु जी कि करूणानिधान शब्द भी छोटा लगाता है। किन्तु दूसरे किस शब्द से परिभाषित करुं मैं जानता ही नहीं। हाँ इतना जान गया हॅूं कि हमारी अनन्त इच्छाओं को तो नहीं किन्तु उचित इच्छाओं को प्रभु जी कैसे पूरा करते है। मैं नहीं जानता, बस मेरा जो निजी सूक्ष्म ज्ञान का अनुभव है वह यहीं है। मैं जो हूँ प्रभु श्री हनुमानजी की कृपा पर हूँ और प्रतिदिन यही आराधना करता हूँ कि
मोर सुधारहिं सो सब भांति।
जासु कृपा नहिं कृपा अघाती।।
प्रभु के चरणों में ले जाने का श्रेय श्रृद्धेय परम पूज्य डा. आर. एस. द्विवेदी (स्वामी रामानन्द सरस्वती) मेरे अग्रज का है। इतना मैं अवश्य सोचता हूँ कि चरण शरण में जाने के लिए आस्था एवं विश्वास ही एक मार्ग है। ।। जय श्री राम ।।


अशोक द्विवेदी
लखनऊ